बीकानेरी भुजिया मेरी फे़वरेट नमकीन है. इस क्रिस्पी और टेस्टी नमकीन पर दुनिया की सारी ख़ुशियां वारी जा सकती हैं. मेरी इस बात से बीकानेरी भुजिया के चाहने वाले ज़रूर सहमत होगें. कई बार इसे खाते हुए मैंने सोचा है कि कब ये हमारे नाश्ते का हिस्सा बनी? मेरी इसी चाह ने मुझे गूगल की गहराइयों में गोता लगाकर बीकानेरी भुजिया का इतिहास निकाल लाने को प्रेरित किया.
चलिए मिलकर बीकानेरी भुजिया के इतिहास पर भी एक नज़र डाल लेते हैं.
थोड़ी सी रिसर्च करने पर पता चला कि बीकानेरी भुजिया जिसे हम चाय, मिठाई या फिर अन्य किसी भारतीय पकवान के साथ बड़े ही चाव से खाते हैं उसका इतिहास राजा महाराजाओं से जुड़ा है.
इसका ताल्लुक राजस्थान के बीकानेर शहर से है. इसका इतिहास क़रीब 150 वर्ष पुराना है. बीकानेर की रियासत की राजधानी रहे इस शहर की स्थापना 1482 में राजा राव बीका ने की थी. बीकानेर रियासत के एक प्रसिद्ध राजा थे, महाराजा डूंगर. 1877 में पहली बार बीकानेरी भुजिया का निर्माण उन्हीं के शासनकाल में हुआ था. उसके बाद इसका स्वाद लोगों की ज़ुबान पर ऐसा चढ़ा कि ये पूरे भारत में प्रसिद्ध हो गई.
बीकानेर के बाज़ारों में इस भुजिया को कड़ाहे में तलते लोग आपको हर कहीं दिखाई दे जाएंगे. बीकानेर में हर दिन हज़ारों टन बीकानेरी भुजिया बनाई जाती है. वहां पर बीकानेरी भुजिया अब एक छोटी इंडस्ट्री का रूप ले चुकी है. अब तो इसे विदेशों में भी निर्यात किया जाने लगा है. हल्दीराम, बिकानो जैसे फ़ेमस नमकीन ब्रांड इसके प्रमुख विक्रेताओं में से एक हैं.
ये शहर अपने कल्चर और पहनावे के लिए तो फ़ेमस रहा ही है, अब अपनी बीकानेरी भुजिया के लिए वर्ल्ड फ़ेमस हो गया है. विदेशों में भी इसके चाहने वालों की कोई कमी नहीं है.
इस भुजिया को कुछ लोग ‘भुजिया सेव’ भी कहते हैं. टाइम पास करने का ये बेस्ट स्नैक है. ये जिस भी फ़ूड के साथ मिल जाती है उसका स्वाद दोगुना कर देती है.
बीकानेरी भुजिया के इतिहास से जुड़ा ये पहलू जानते थे आप?
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