जानिए ‘गुलाब जामुन’ को गुलाब जामुन ही क्यों कहा जाता है? जबकि इसमें न ही गुलाब है और न ही जामुन

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भारत प्राचीनकाल से ही सांस्कृतिक विविधताओं वाला देश रहा है. भारत एक ऐसा देश है जहां खाने पीने वालों की कोई कमी नहीं है. इसीलिए तो हमारे देश ने चाइनीज़ से लेकर जैपनीज़, इटालियन हर देश के खाने का दिल खोलकर स्वागत किया है. भारत में ईरानी (पर्शियन) कुज़ीन भी काफ़ी मशहूर हैं. भारत में ‘तंदूर’ ईरान की ही सौगात मानी जाती है. आज देश के छोटे से लेकर बड़े होटलों में तंदूरी रोटी बड़े चाव से खाई जाती है. इसके अलावा भी कई ऐसे ईरानी व्यंजन हैं जो आज भारतीय प्लेट की शान बन चुके हैं.

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हम भारतीय मिठाइयों के भी बड़े शौक़ीन माने जाते हैं. भारत में कई तरह की लज़ीज़ मिठाइयां बनाई जाती हैं, इन्हीं में से एक गुलाब जामुन (Gulab Jamun) भी है. ये खाने में जितना स्वादिष्ट होता है, इसका इतिहास भी उतना ही मीठा और चटपटा है. लेकिन जिस ‘गुलाब जामुन’ को अब तक आप भारतीय मिठाई समझ कर खा रहे थे वो भारतीय है ही नहीं. ये एक पर्शियन डिश है, जो पर्शिया (ईरान) में अलग तरीके से बनाई जाती है.

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भारत में ‘गुलाब जामुन’ को लेकर अक्सर लोगों के मन में हमेशा एक सवाल घूमता रहता है. वो ये कि आख़िर ‘गुलाब जामुन’ को गुलाब जामुन ही क्यों कहा जाता है? जबकि इसमें न तो ‘गुलाब के फूल’ का इस्तेमाल किया जाता है और न ही इसमें ‘जामुन का रस’ मिलाया जाता है.

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चलिए अब ‘गुलाब जामुन’ के पीछे का इतिहास भी जान लीजिये-

इतिहासकार माइकल क्रांजल के मुताबिक़, 13वीं सदी के आसपास पर्शिया (ईरान) में ‘गुलाब जामुन’ की शुरुआत हुई थी. ईरान में ‘गुलाब जामुन’ की तरह ही एक मिठाई तैयार की जाती है, जिसे ‘लुक्मत अल-क़ादी’ कहा जाता है. ‘गुलाब जामुन’ में गुलाब दो शब्दों से मिलकर बना है ‘गुल’ और ‘आब’. इसमें ‘गुल’ का मतलब ‘फूल’ से है और ‘आब’ का मतलब ‘पानी’ से है. जबकि ‘जामुन’ के आकार की तरह दिखने की वजह से इसे ‘गुलाब जामुन’ कहा जाता है.

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पर्शिया में कैसे तैयार होती है ये डिश  

पर्शिया (ईरान) में गुलाब जामुन (लुक्मत अल-क़ादी) डिश बनाने के लिए सबसे पहले मैदे से बनी गोलियों को घी में डीप फ़्राई किया जाता है. इसके बाद इन्हें शहद या शक्कर की चाशनी में डुबोया जाता है. इस दौरान इस मीठे पानी (चासनी) को बनाने के लिए उसमें ग़ुलाब के फूलों की सूखी पंखुड़ियों को तोड़कर डाला जाता है. इसलिए इसे ‘गुलाब रस’ भी कहा जाता है.

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भारत में कब हुई इसकी शुरुआत? 

बताया जाता है कि पर्शिया (ईरान) के बाद ये मिठाई टर्की में भी तैयार की जाने लगी. बाद में टर्की के लोग इसे भारत लेकर आये और ये ‘लुक्मत अल-क़ादी’ से ‘गुलाब जामुन’ बन गई. भारत में इस मिठाई की शुरुआत तत्कालीन मुग़ल सम्राट शाहजहां के शासनकाल में हुई थी. ये शाहजहां की पसंदीदा मिठाई हुआ करती थी. मुग़ल सम्राट शाहजहां के दरबार में ही सबसे पहले इसे तैयार करवाया गया था.

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17वीं सदी से लेकर आज तक ये डिश भारतीयों की सबसे पसंदीदा मिठाई बन चुकी है. शादी से लेकर बर्थडे तक भारत में ऐसा कोई भी फ़ंक्शन नहीं होगा, जहां स्वीट डिश के तौर पर ‘गुलाब जामुन’ न परोसा जाता हो. इसके अलावा ये मिठाई भारतीय उपमहाद्वीप, मॉरीशस, फिजी, दक्षिणी और पूर्वी अफ़्रीका, कैरिबियन और मलय प्रायद्वीप में भी बनायीं जाती है.

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पर्शिया (ईरान) में गुलाब जामुन (लुक्मत अल-क़ादी) को बमीह (Bamieh) भी कहते हैं. जबकि तुर्की में ‘गुलाब जामुन’ को तुलुंबा (Tulumba) कहा जाता है.

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