भारतीय मिठाई नहीं है जलेबी, जानिए कहां से और कौन इसे अपने देश में लेकर आया था

J P Gupta

जलेबी का नाम सुनते ही हर कोई इससे जुड़ी यादों में खो जाता है. किसी को धारा के ऐड वाला बच्चा याद आज आ जाता है, तो किसी को ख़ुद से जुड़ा कोई किस्सा. बचपन में मिठाई के नाम पर जलेबी ही घर आती थी. अगर कभी बाज़ार-हाट घूमना हुआ तो वहां पर जलेबी पर दुनिया जहान की बातों पर चर्चा हो जाती थी. हमें य़कीन है कि आपके पास भी जलेबी से जुड़ा ऐसा ही कोई किस्सा होगा. क्या करें जलेबी का स्वाद है इतना अनोखा कि इसकी याद जेहन से मिटाए नहीं मिटती. 

तो चलिए इसी बात पर आज टेढ़ी-मेढ़ी रस से भरी इस लज़ीज मिठाई का इतिहास भी जान लेते हैं. 

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हमारी बचपन की यादों से लेकर, हर शहर के नुक्कड़ तक जलेबी इस तरह बसी हुई है कि सुनकर पहली बार में ये मानने का ही दिल ना करे कि जलेबी सबसे पहले भारत में नहीं बनी, बल्कि किसी और देश से यहां पहुंची. जी, हां सही पढ़ा आपने, जलेबी की खोज भारत में नहीं पश्चिमी एशिया में हुआ थी. ईरान में इसे ज़ोलबिया कहा जाता था. कहते हैं कि इसे रमज़ान के समय ग़रीबों में बांटने के लिए बनाया जाता था.

13वीं सदी की एक क़िताब में है इसका ज़िक्र

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13वीं शताब्दी में मुहम्मद बिन हसन अल-बगदादी ने उस समय के प्रसिद्ध व्यंजनों की एक क़िताब लिखी थी. इसका नाम था किताब अल-तबीख. इसमें पहली बार ज़ौलबिया(जलेबी) का ज़िक्र किया गया था. मध्यकाल में ये फ़ारसी और तुर्की व्यापारियों के साथ भारत आई और इसे हमारे देश में भी बनाया जाने लगा. 

फ़ारसी में इसे ज़ौलबिया कहते थे और भारत में आने के बाद इसे लोग जलेबी कहने लगे. 15वीं शताब्दी तक आते-आते जलेबी इतनी प्रसिद्ध हुई कि हर त्योहार, शादी यहां तक कि मंदिरों के प्रसाद में भी बनाई जाने लगी. 

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जैन धर्म की बुक में भी जलेबी के बारे में लिखा गया है

1450 में लिखी गई एक जैन धर्म की क़िताब में भी जलेबी का ज़िक्र है. इसके अनुसार, अमीर जैन धर्मार्थियों के यहां जलेबी खाने को मिलती थी. 16वीं शताब्दी के एक लेखक रघुनाथ द्वारा लिखी गई बुक ‘भोजन कौतुहल’ में भी इसका वर्णन है. उससे पहले संस्कृत भाषा में लिखी गई पुस्तक ‘गुण्यगुणाबोधिनी’ में भी जलेबी के बारे में लिखा गया है. इसमें बताई गई विधी के अनुसार आज भी जलेबी को बनाया जाता है.

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जलेबी भारत ही नहीं दक्षिण एशिया के बहुत से देशों बहुत ही चाव से खाई जाती है. सभी जगह इसे अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है. देश और समुदाय के हिसाब से इसके टेस्ट में भी थोड़ा बदलाव आ जाता है. लेकिन बनाने का तरीका एक जैसा ही है. 

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जलेबी का ये इतिहास पढ़ने के बाद जिस-जिस को जलेबी खाने का मन करने लगा हो, वो इसे ऑनलाइन या फिर अपने नज़दीकी मिठाई की दुकान पर जा कर चख सकता है. मैं तो चला. 

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