1 रुपये का सिक्का बनाने में 1.2 रुपये खर्च होते हैं, जानिए घाटे के बावजूद इसे क्यों बनाया जाता है

Maahi

Indian Currency Coins: भारतीय करेंसी नोटों और सिक्कों का इतिहास बेहद गहरा रहा है. इनमें समय-समय पर कई बदलाव हुए हैं. देश में पिछले कई दशकों से हम नोट और सिक्कों की मदद से ही लेन-देन करते आ रहे हैं. हालांकि, पिछले कुछ सालों से लेन-देन ‘डिजिटल पेमेंट्स’ के ज़रिए भी होने लगी है, लेकिन आज भी देश एक तबका ऐसा है जो कैश में ही लेन-देन करना पसंद करता है. देश में मौजूदा समय में 2000, 500, 200, 100, 50, 20, 10, 5, 2 और 1 रुपये के नोट और 1, 2, 5, 10 और 20 रुपये के सिक्के प्रचलन में हैं. लेकिन सिक्कों की ढलाई से जुड़ा एक तथ्य जानकर आप हैरान रह जायेंगे.  

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भारत सरकार को हर साल करेंसी नोट और सिक्के छापने के लिए भी बहुत सारा पैसा खर्च करना पड़ता है. इस दौरान को सिक्कों को बनाने के लिए सरकार को घाटे का सौदा तक करना पड़ता है. मतलब ये कि भारत सरकार को हर सिक्के को बनाने में उनकी क़ीमत से ज़्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है. उदहारण के तौर पर भारत सरकार को 1 रुपये का सिक्का बनाने में 1.2 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. घाटे के बावजूद सरकार हर साल लाखों सिक्के जारी करती है.   

1 Rupee Coin

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चलिए जानते आख़िर घाटा होने के बावजूद भारत सरकार हर साल लाखों के सिक्के क्यों जारी करती है? 

दरअसल, भारत में किसी भी नोट को बनाने के लिए उसमें बहुत सारे सिक्योरिटी फ़ीचर्स डाले जाते हैं. इनमें ख़ास तरह का कागज, सिक्योरिटी लाइन, आरबीआई गवर्नर के सिग्नेचर और गांधी जी की फोटो आदि शामिल हैं. नोट कागज का बनता है ऐसे में इसको बनाने में सरकार को ज़्यादा खर्च उठाना नहीं पड़ता. लेकिन सिक्कों को बनाने की प्रक्रिया थोड़ी अलग है. भारत सरकार को 1 रुपये का सिक्के को बनाने में 1.2 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. 

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1 रुपये का सिक्का करता है महंगाई को कंट्रोल 

अब आप सोच रहे होंगे घाटे के बादजूद सरकार 1 रुपये के सिक्के (1 Rupee Coin) क्यों बनाती है! दरअसल, 1 रुपये के सिक्के को बनाने के पीछे की असल वजह महंगाई को कंट्रोल करना है, ये महंगाई को कंट्रोल करने में अहम भूमिका निभाता है. अगर मिनिमम सिक्के की वैल्यू 2 रुपये हो जाएगी तो कोई भी चीज़ महंगी होने पर सीधे 2 रुपये, 4 रुपये, 6 रुपये की संख्या में बढ़ेगी. यही कारण है कि सरकार को छोटी क़ीमत वाली करेंसी सर्कुलेशन में रखनी ही पड़ती है. 1 रुपये के सिक्के की तरह ही 1 रुपये का नोट भी यही काम करता था, लेकिन उसकी शेल्फ लाइफ बेहद कम होती है और यही कारण है कि अब सिक्के ज्यादा बनाए जाते हैं.  

1 Rupee Coin

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भारत में आज भी बहुत सारे लोगों को लगता है कि सरकार को ज़्यादा से ज़्यादा नोटों की छपाई करके ग़रीबों में बांट देने चाहिए. लेकिन लोगों की इस हवा हवाई सोच से सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता. क्योंकि इसके पीछे का लॉजिक समझना और समझाना आम लोगों के लिए बेहद मुश्किल है. पहली बात तो ये कि अगर एक्स्ट्रा करेंसी सर्कुलेशन में आती है तो नोटों की क़ीमत घट जाती है.  

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