Life In The Army : “सेना में सेवा देना नौकरी नहीं है. ये नौकरी नहीं हो सकती. सेना के अधिकारी दुनिया में किसी भी शीर्ष रैंकिंग की नौकरी पाने के लिए अच्छी तरह से योग्य हैं. लेकिन सेना में काम करना प्यार के बारे में है. ये एक जुनून है. आप इसे अपने देश के गौरव और सम्मान के लिए करते हैं.”
-मेजर SK यादव इंडियन आर्मी
आर्म्ड फ़ोर्सेज़ (Armed Forces) में लाइफ़ किसी अन्य की तरह नहीं है. जब आप सियाचिन ग्लेशियर में -50 डिग्री के तापमान पर समुद्र तल से 16,000 फ़ीट ऊपर अपने देश की सीमाओं की रक्षा कर रहे हों, तो ये सिर्फ़ एक नौकरी नहीं हो सकती, है ना? ना ही राजस्थान की चिलचिलाती गर्मी में 50 डिग्री के औसत तापमान में जूझना एक नौकरी हो सकती है.
आप अपने लिए काम नहीं कर रहे हैं. आप इसे अपने देश और इसके नागरिकों के लिए कर रहे हैं. आप ये सुनिश्चित कर रहे हैं कि वे सामान्य रूप से अपना जीवन व्यतीत करें, भले ही आपका जीवन कैसा भी हो. इतना निस्वार्थ होना आसान नहीं है और यही बात इन साधारण लोगों को असाधारण बनाती है.
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उरी हमले और उसके बाद हुई सर्जिकल स्ट्राइक के मद्देनजर भारत और पाकिस्तान के बीच राजनीतिक माहौल काफ़ी तनावपूर्ण था. भले ही दोनों सरकारें राष्ट्रीय टेलीविज़न पर अपने समकक्षों को टक्कर देने में व्यस्त थीं, लेकिन हमने नियमित नागरिक के रूप में, अपने ट्वीट्स, स्टेट्स, मैसेजेस और खुले पत्रों के साथ सोशल मीडिया पर तूफ़ान ला दिया था. इन सबके बीच कलाकारों की भूमिका पर भी बहस चल रही थी.
लेकिन जहां बाकी हम सब लोग पक्ष लेने में बिज़ी थे या युद्ध के लिए चिल्ला रहे थे या फिर शांति की दुआ कर रहे थे, वहां वो आर्मी ही थी, जो बॉर्डर पर सभी सीज़फ़ायर और बढ़ते तनाव के बीच गोलियों से लड़ रही थी.
जैसा कि मेजर यादव कहते हैं कि आर्मी के लोगों का कठिन परिश्रम ट्रेनिंग लेवल से ही शुरू हो जाता है. उनका कहना था, “हमारी ट्रेनिंग गलतियों के लिए बिल्कुल शून्य सहिष्णुता के साथ कड़े अनुशासन के तहत की जाती है. शेड्यूल कठिन है और आराम के लिए बहुत कम समय मिलता है. हमें मिलने वाली कड़ी सजाओं को नहीं भूलना चाहिए.”
ट्रेनिंग पीरियड के दौरान, कैडेट बहुत कम या बिना नींद के काम करते हैं और स्पीड मार्च के साथ कठोर व्यायाम और दिनचर्या का पालन करते हैं और अपनी पीठ पर पूरे युद्ध भार के साथ दौड़ते हैं. इन दिनचर्याओं का प्रतिदिन लंबे समय तक अभ्यास किया जाता है.
लेकिन जो चीज इन सभी चीज़ों को सार्थक बनाती है, वो है फ़ायदे. आर्मी ट्रेनिंग से निकलने वाला हर एक शख्स तमीज़ और स्टाइल से बेदाग है. वे सही से चलना, बात करना, पहनावा और भोजन करना जानते हैं. क्या हम सभी ने हमेशा आर्म्ड फोर्सेज़ की लाइफ़स्टाइल को नहीं देखा है? मेजर यादव कहते हैं, “उन ट्रेनिंग के दिनों के दौरान आपके बॉन्ड जीवन भर चलते हैं.”
सेना के जवानों के लिए संघर्ष ट्रेनिंग लेवल पर समाप्त नहीं होता है. दरअसल, असली संघर्ष वहीं से शुरू होता है.
उदाहरण के लिए, जम्मू और कश्मीर सीमा पर, एक सैनिक के जीवन में चौबीसों घंटे ड्यूटी पर रहना शामिल है. मेजर यादव बताते हैं, “हम अत्यधिक ठंड की स्थिति में काम करते हैं, जिसमें परिवहन के लिए उचित सड़कें और ट्रैक नहीं हैं और बहुत कम या कोई पब्लिक सपोर्ट नहीं है. पीने के लिए पर्याप्त पानी नहीं है और कभी-कभी, ऑपरेशन के लिए हमें बीच-बीच में आराम किए बिना हफ्तों तक ड्यूटी पर रहना पड़ता है.”
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हमारे सैनिक सिर्फ़ दुश्मनों से ही नहीं लड़ रहे हैं. वे प्राकृतिक आपदाओं से भी लड़ रहे हैं. इतनी अधिक ऊंचाई पर शीतदंश, सर्दी से मरना, याद्दाश्त खो जाना और पल्मोनरी एडिमा आम समस्याएं हैं. वो कहते हैं, “हम किसी भी समय दुश्मन के हमलों के खतरे के साथ-साथ हिमस्खलन से भी निपट रहे होते हैं.” विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप भी आम हैं.
यहां तक कि पूर्वोत्तर भारत की सीमाओं पर भी समस्याएं समान हैं. मेजर यादव कहते हैं, “वहां एक गंभीर समस्या भाषा है. कोई भी जो उन राज्यों से संबंधित नहीं है, स्थानीय बोली से परिचित नहीं है. साथ ही, क़ानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए नागरिक अधिकारियों की सहायता के लिए सेना ज़िम्मेदार है और इससे बोझ बढ़ता है.”
यहां हर साल भारी वर्षा के साथ-साथ विशाल और घने जंगल हैं. ये सब अंतराल को आसान बनाता है और म्यांमार को आसान पास भी प्रदान करता है. सेना नियमित रूप से जहरीले कीड़ों, लीच और रेपटाइल्स से भी लड़ती है.
मेजर यादव कहते हैं, “चूंकि उत्तर-पूर्व के लोग थोड़े अलग दिखते हैं, इसलिए अधिकांश सैन्यकर्मी आसानी से पहचाने जा सकते हैं.”
सशस्त्र बलों में जीवन आसान नहीं है. ये हर रोज़ एक नई चुनौती है और चुनौती सिर्फ़ दुश्मन से नहीं बल्कि प्रकृति से भी है. आप अपने अपनों से बहुत दूर हैं, हर दिन जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं. लेकिन ये इन लोगों की भावना और भारत के लिए उनका अमर प्रेम है, जो उन्हें आगे बढ़ाता है.
परमवीर चक्र 1/11 और गोरखा राइफल्स के कैप्टन मनोज कुमार पांडे, ने एक बार कहा था, “अगर मौत आती है, इससे पहले कि मैं अपना खून साबित करूं, मैं कसम खाता हूं कि मैं मौत को मार डालूंगा.” ये अदम्य भावना है जो हज़ारों सलामी के लायक है.
जैसा कि मेजर यादव कहते हैं, ”सेना के लोग जानते हैं कि उनसे किस लेवल की उम्मीदें हैं और उन उम्मीदों पर खरा उतरने का एकमात्र तरीका ट्रेनिंग और कठिन ट्रेनिंग है. ये लगभग सुपर ह्यूमन होने जैसा है. जो लोग शारीरिक, मानसिक, इमोशनल और आध्यात्मिक रूप से मज़बूत हैं, वे सभी बाधाओं से बचे रहते हैं और ये वो होते हैं जो आर्मी का हिस्सा बनते हैं.”