मिलिए ऐसी लड़की से जिसने 9 से 5 की नौकरी के बाद भी 12 महीनों में लगाये 12 जगहों के चक्कर

Sanchita Pathak

कहते हैं जिसने सफ़र नहीं किया, उसने जीवन ठीक से अनुभव नहीं किया है. ट्रैवलिंग से न सिर्फ़ आपको नए अनुभव होते हैं, आप ख़ुद के और क़रीब आते हैं.

हम 9 से 5 की नौकरी करने वालों की ज़िन्दगी कैसी होती है, इसके बारे में क्या ही लिखा जाए. Mutual Feelings है दोस्तों, समझ तो आप गए ही होंगे. जितना हम काम में व्यस्त होते हैं, उतना ही ट्रैवलिंग के लिए तत्पर भी होते हैं. पर वक़्त कहां मिलता है, प्लान्स पर प्लान्स बनते रहते हैं. जितने बनते नहीं उससे ज़्यादा शायद कैंसल हो जाते हैं.

लेकिन इस 9 से 5 के नौकरीपेशा लोगों की भीड़ में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो अपने लिए घूमने-फिरने का वक़्त निकाल ही लेते हैं. Sreshti Verma भी ऐसी ही एक शख़्स हैं. दफ़्तर और ट्रैवलिंग को कैसे मैनेज करना है, ये हम इनसे सीख सकते हैं.

Indiatimes में छपे लेख के अनुसार, पेशे से लेखिका Sreshti ने 12 महीनों में 12 ट्रिप्स ली हैं, वो भी एक 9 से 5 की नौकरी के साथ. ये मज़ाक नहीं, हक़ीक़त है.

बचपन से ही ट्रैवलिंग की शौक़ीन Sreshti बताती हैं…

मेरे माता-पिता पहाड़ी हैं और जब मैं छोटी थी तो ट्रिप का मतलब होता था, पहाड़ों पर जाना. पढ़ाई ख़त्म होने पर मैंने जाना की मुझे रास्ते कितने पसंद हैं. पिछले 2-3 सालों से मैं यही कर रही हूं.

फ़िलहाल दिल्ली में रह रहीं Sreshti ने अपने 12 ट्रिप्स में लगभग पूरा उत्तर भारत घूम लिया है.

Sreshti के ट्रिप्स का ब्योरा कुछ यूं था-

जनवरी में पूर्वी सिक्किम, दार्जीलिंग

फरवरी में हिमाचल के खड़ापत्थर के Khuppar Top की ट्रेकिंग

मार्च में प्रशर झील तक ट्रेकिंग

अप्रैल में मुंबई

मई में Kareri झील ट्रेक

जून में डलहौज़ी, खज्जियार, चम्बा

जुलाई में उत्तराखंड का शीतलाखेत

अगस्त में उदयपुर, वो भी सोलो ट्रिप

सितंबर में रिवालसर

अक्टूबर में नाग्गर, सोलो ट्रिप

नवंबर में सौर, फिर से सोलो ट्रिप

दिसंबर में पूर्वी सिक्किम

इतनी सारी ट्रैवलिंग, पर बजट???

बजट में इतनी सारी जगह घूमना, सुन कर ही नामुमकिन लग रहा है. लेकिन Sreshti ने Long Weekends का फायदा उठाया और अपना फाइनेंस भी मैनेज किया. Sreshti ने बताया…

मैंने अपने ट्रिप्स पर काफ़ी सारे दोस्त बनाये और ये निश्चित किया कि मैं काफ़ी ख़र्चे न करूं. मैं जब उदयपुर गई तो ट्रेन नहीं, फ़्लाइट से गई. इस ख़र्चे को एडजस्ट करने के लिए मैंने होटल नहीं, हॉस्टल में रहना तय किया. होटल और रेस्टोरेंट में खाने के बजाये मैंने फलों से काम चलाया और लोकल ढाबों पर खाना खाया. मैंने ये निश्चित किया कि मैं किसी भी ट्रिप पर 10 हज़ार से ज़्यादा ख़र्च न करूं.

प्लैनिंग करें या न करें

हम में से अधिकतर लोगों के प्लैन्स अक्सर कैंसल हो जाते हैं. तो आख़िर क्या करें? इस पर Sreshti का कहना है…

मैं एक बात कहूंगी, बिना सोचे-समझे ट्रिप्स पर जाना अच्छा है, लेकिन एकदम न सोचना ये भी सही नहीं है. पहले से सेव करना ज़रूरी है. आमतौर पर जो ख़र्चे आप करते हैं, उसमें कटौती करना ज़रूरी है. बैंक अकाउंट में कुछ पैसे होना ज़रूरी है, ताकि आप जब चाहे, जहां चाहे ट्रैवल कर सकें.

सोलो ट्रिप्स, ख़ुद से मिलने का सबसे अच्छा तरीका

आमतौर हम इतने व्यस्त हो जाते हैं कि ख़ुद के लिए वक़्त नहीं निकाल पाते. पर सबको सोलो ट्रिप लेना चाहिए. इसके कुछ फ़ायदे हैं, तो कुछ नुकसान भी हैं. इस पर Sreshti ने कहा…

मैं अपने पहले सोलो ट्रिप पर उदयपुर गई थी और एक हॉस्टल में रुकी थी. थोड़ा डर लगेगा, कुछ परेशानियां भी आएंगी. जैसे कि अगर आप रात की बस ले रहे हैं, तो सुरक्षा समस्या बन सकती है. बहुत से लोगों को लगता है कि सोलो ट्रिप्स बोरिंग होते हैं, पर अगर आप Home Stays में रहेंगे, तो ट्रिप काफ़ी मज़ेदार होगा. आप हॉस्टल्स में भी रुक सकते हैं, जहां आपके पास देश के बाकी ट्रैवलर्स से मिलने का मौका भी होगा.

सफ़र का ही था मैं, सफ़र का रहा

ट्रैवलिंग इंसान को बदल देती है. Sreshti का मानना है कि ट्रैवलिंग ने उनमें और ज़्यादा आत्मविश्वास भर दिया है. Sreshti ने कहा…

मुझे लगता है कि हम परेशानियों को Overestimate करते हैं. मैं पहाड़ों पर दूर-दराज़ के इलाकों में गई, एक बार बाहर निकलने पर आपकी ज़िन्दगी बदलने लगती है और आप ज़िन्दगी की ज़्यादा क़द्र करने लगते हैं. मुझे लोगों की Survival Spirit काफ़ी पसंद आया.

Sreshti की कहानी हम सबके लिए प्रेरणादायक है, जो ये सोचते हैं कि वक़्त कहां है. ये जो वक़्त है, सबसे सही है. जो करना है आज कर लो क्योंकि कल किसने देखा है. तो ट्रिप्स प्लैनिंग-कैंसलिंग छोड़ो और निकल पड़ो एक नए सफ़र पर.

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