बिहार के नालंदा से ओडिशा का पुरी शहर लगभग 750 किलोमीटर दूर है. मगर फिर भी दोनों के बीच एक गहरा कनेक्शन है. ये कनेक्शन इन्हें इतिहास ही नहीं वर्तमान में भी पास लाता है. इन दोनों के बीच के इस स्पेशल कनेक्शन को ही आज हम आपके लिए डिकोड करेंगे.
इन दोनों शहरों के बीच में जो कॉमन चीज़ है वो है खाजा मिठाई. दोनों ही शहरों के लोग इस मिठाई को बड़े ही चाव से खाते हैं. पैटीज़ जैसी दिखने वाली ये मिठाई बहुत ही स्वादिष्ट होती है और मुंह में रखते ही घुल जाती है.
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जगन्नाथ भगवान को लगता है भोग
देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में ही इसके चाहने वालों की कोई कमी नहीं है. भगवान जगन्नाथ को भी इस मिठाई का भोग पुरी के फ़ेमस जगन्नाथ टेंपल में लगाया जाता है. उनके लिए बनाए जाने वाले छप्पन भोग में भी इसका नाम दर्ज है. खाजा मिठाई का इतिहास सदियों पुराना है. इसका ज़िक्र 12वीं सदी में लिखी गई क़िताब मानसोल्लासा(अभिलाशितार्थ चिंता मणि) में भी किया गया है.
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चीनी यात्री Hiuen Tsang ने भी चखा था इसका स्वाद
इसकी उत्पत्ति अवध में हुई थी. ऋग्वेद और अर्थशास्त्र में इसे शक्तिशाली भोजन के रूप में वर्णित किया गया है. कुछ लोगों का मानना है कि मौर्य वंश के दौरान सिलाओ नामक एक छोटे से गांव में इसे पहली बार बनाया गया था. ये वर्तमान में बिहार के प्राचीन शहर मिथिला और नालंदा के बीच स्थित है. इसलिए सिलाव का खाजा भी लोगों ख़ासकर बिहारियों में बहुत फ़ेमस है. कहते हैं कि चीनी यात्री Hiuen Tsang जब नालंदा आए थे तो उन्होंने भी इसका स्वाद चखा था.
2018 में मिला GI टैग
यही नहीं मान्यता है कि जब भगवान बुद्ध जब राजगीर जा रहे थे तो वो सिलाव में रुके थे. यहां उन्हें भी खाने के लिए खाजा परोसा गया था. इसका स्वाद उन्हें बहुत पसंद आया था और बाद में अपने अनुयाइयों को भी इसे खाने को कहा था. मगर पुरातत्वविद् J.D. Beglar के मुताबिक उन्होंने खाजा मिठाई का ज़िक्र बिहार में ही सुना था, जब वो 1872-73 में नालंदा गए थे. तब वहां के नागरिकों ने उनसे कहा था कि राजा विक्रमादित्य के शासन से ही खाजा यहां खाया जा रहा है. उनके कारण ही सिलाव के खाजा को 2018 में GI टैग दिया गया था.
खाजा मिठाई भले ही किसी प्रदेश की हो, ये होती बहुत ही स्वादिष्ट है. इस मिठाई को यूपी, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश के लोग बहुत खाते हैं. विदेशों में भी इसकी सप्लाई हो रही है. तो अगली बार जब भी यहां आपको जाने का मौक़ा मिले तो इसे चख कर ज़रूर आना.