ये 5 बीमारियां जितनी दुर्लभ हैं उतनी ही ख़तरनाक भी, डॉक्टर्स भी नहीं ढूंढ पाए इनका इलाज

Abhay Sinha

राजस्थान से एक बड़ा ही अनोखा मामला सामने आया है. यहां नागौर जिले के भदवा गांव में एक शख़्स साल में क़रीब 300 दिनों तक सोता रहता है. यही वजह है कि आसपास के गांव वालों ने उन्हें ‘कुंभकरण’ कहना शुरू कर दिया है. 42 वर्षीय पुरखाराम की इस अजीब हालत का कारण एक्सिस हायपरसोम्निया (Axis Hypersomnia) नाम की एक दुर्लभ बीमारी है. इस बीमारी की वजह से एक बार सोने के बाद वो आराम से 20 से 25 दिन तक लगातार सोते रहते हैं.

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बताया गया कि 18 साल की उम्र से उनकी इस बीमारी की शुरुआत हुई थी, तब वो लगातार 5 से 7 दिन तक सोते थे. उस वक़्त डॉक्टरों को दिखाया गया था, लेकिन उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं आया. ऐसे में नहाने से लेकर खाने तक के रोज़मर्रा के काम पुरखाराम को परिवार की मदद से सोते हुए ही करने पड़ते हैं.

जागरूकता के अभाव में भले ही लोग उन्हें कुंभकरण कह रहे हों, लेकिन दुनिया में ऐसी बहुत सी बीमारियां हैं, जिनके बारे में लोगों को जानकारी ही नहीं है. ऐसे में आज हम आपको कुछ दुर्लभ बीमारियों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं.

1. स्टोनमैन सिंड्रोम

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फाइब्रोडिस्प्लासिया ऑसिफिकन्स प्रोग्रेसिव (FOP), जिसे बोलचाल की भाषा में स्टोनमैन सिंड्रोम के रूप में जाना जाता है. इस बीमारी में कनेक्टिव टिश्यू जैसे टेंडन, मांसपेशियों और लिगामेंट्स हड्डी की तरह सख़्त हो जाते हैं. बीमारी धीरे-धीरे गर्दन से शुरू होकर कंधों और फिर शरीर के निचले हिस्सों तक पहुंच जाती है. रोगी को मुंह खोलने में कठिनाई होती है, जिसके कारण उसे खाने और बोलने में परेशानी होती है. 

ये बीमारी बहुत रेयर है. क़रीब 20 लाख में से किसी एक को ही ये बीमारी होती है. यही वजह है इसका अभी तक कोई अच्छा इलाज नहीं ढूंढा जा सका है.

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2. एलिस इन वंडरलैंड सिंड्रोम (AIWS)

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एलिस इन वंडरलैंड सिंड्रोम एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल स्थिति है, जिसमें लोग कई तरह से कंफ़्यूज़ महसूस करते हैं मसलन, वो अपनी ही वास्तविक ऊंचाई से छोटा-बड़ा महसूस करते हैं. AIWS से प्रभावित लोगों को ऐसा भी लग सकता है कि वो जिस कमरे में हैं, वो शिफ़्ट हो रहा है. या आसापास का फ़र्नीचर पास या दूर आ रहा है. कोई बिल्डिंग, गलियारा अपनी वास्तिक लंबाई से बड़ा-छोटा महसूस हो सकता है.

इस बीमारी में इंसान के देखने, सुनने, स्पर्श करने, समय का अनुमान और इमोशन्स प्रभावित होते हैं. ये बीमारी बेहद दुर्लभ है और इसका कोई इलाज भी फ़िलहाल नहीं है. साथ ही, ये भी नहीं पता है कि दुनिया में कितने लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं.

3. हचिंसन-गिलफोर्ड प्रोजेरिया सिंड्रोम (HGPS)

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हचिंसन-गिलफोर्ड प्रोजेरिया सिंड्रोम एक ऐसा रोग है जिसमें कम उम्र के बच्चों में भी बुढ़ापे के लक्षण दिखने लगते हैं. प्रोजेरिया के साथ पैदा होने वाले लोग आमतौर पर अपने किशोरावस्था में लगभग बीस वर्ष तक जीवित रहते हैं. इस अनुवांशिक स्थिति का मतलब है कि इंसान के तेज़ी से बुढ़ापा आता है. साथ ही, चेहरे का आकार भी अलग दिखता है. जिनमें, पतली चोंच वाली नाक, पतले होंठ, छोटी ठुड्डी और उभरे हुए कान शामिल हैं. इस दुर्लभ बीमारी से 40 लाख में से कोई एक प्रभावित होता है. 

4. अल्काप्टोनुरिया

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अल्काप्टोनुरिया, या ‘ब्लैक यूरिन डिजीज’ एक बहुत ही दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी है जो शरीर को टायरोसिन और फेनिलएलनिन नामक दो प्रोटीन बिल्डिंग ब्लॉक्स (एमिनो एसिड) को पूरी तरह से तोड़ने से रोकता है. इसके कारण शरीर में होमोगेंटिसिक एसिड नामक रसायन का निर्माण होता है. ये यूरिन और शरीर के कुछ हिस्सों को एक गहरे रंग में बदल सकता है और समय के साथ कई समस्याओं का कारण बन सकता है. 10 लाख में से कोई एक इस बीमारी से पीड़ित होता है. इसका इलाज नहीं है, लेकिन डाइट पर कंट्रोल कर कुछ राहत पाई जा सकती है.

5. क्रोनिक फोकल एन्सेफलाइटिस (रासमुसेन की एन्सेफलाइटिस)

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रासमुसेन की एन्सेफलाइटिस आमतौर पर 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में होती है. इसमें दौरे पड़ना, आवाज़ खोना, पैरालाइस समेत दिमाग़ पर इसका असर होता है. इलाज से दिमाग़ी क्षमता को कम होने से तो रोका जा सकता है, लेकिन पैरालाइस होने का ख़तरा बना रहता है. जर्मनी में 1 करोड़ लोगों पर 2.4 मामले हैं, जबकि यूके में ये संख्या 1.7 है.

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