इंसान ही नहीं, बल्कि कछुए और लंगफ़िश सहित ऐसे जीव जो करते हैं बोलकर बातचीत

Kratika Nigam

Animals Communicate Vocally: जानवरों की कम से कम 50 से ज़्यादा ऐसी प्रजातियां हैं जो आपस में बोल कर संवाद करती हैं. इन्हें पहले मूक पशु समझा जाता था. हाल ही में, प्रकाशित एक रिसर्च रिपोर्ट में दावा किया किया गया है कि इन जीवों में बोल कर संवाद करने की ख़ूबी एक साझे पूर्वज से क़रीब 40 करोड़ साल पहले विकसित हुई थी.

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मूक जानवरों की रिकॉर्डिंग

इस रिसर्च रिपोर्ट के प्रमुख लेखक और इवॉल्यूशनरी बायोलॉजिस्ट गाब्रियेल योर्गविच-कोहेन ने समाचार एजेंसी एएफ़पी को बताया कि ब्राज़ील के अमेजन वर्षावनों में कछुओं पर रिसर्च करने के दौरान उन्हें मूक जानवरों की आवाज़ को रिकॉर्ड करने का विचार आया. योर्गविच-कोहेन का कहना है,

जब मैं वापस घर आया तो अपने पालतू जानवरों की रिकॉर्डिंग शुरू करने का फ़ैसला किया.

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Animals Communicate Vocally

इसमें होमर नाम का एक कछुआ भी था जिसे उन्होंने बचपन से ही पाला था, उन्हें यह देख कर बड़ी हैरानी हुई कि होमर और उनके दूसरे पालूत कछुए गले से आवाज निकाल रहे थे. इसके बाद, उन्होंने कछुओं की दूसरी प्रजातियों की रिकॉर्डिंग शुरू की. इसके लिए कभी कभी वो हाइड्रोफ़ोन यानी पानी के अंदर काम करने वाला माइक्रोफ़ोन इस्तमाल करते थे. स्विट्ज़रलैंड की ज़्यूरिख यूनिवर्सिटी में रिसर्चर योर्गविच-कोहेन का कहना है,

हर एक प्रजाति जिसकी मैंने रिकॉर्डिंग की वह आवाज़ निकाल रहा था. इसके बाद हमनें ये सवाल पूछना शुरू किया और कितने ऐसे जानवर हैं, जिन्हें हम मूक समझते हैं, लेकिन वो आवाज़ पैदा करते हैं.

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कछुआ, मछली, सरीसृप की बोली

योर्गविच-कोहिन की यह रिसर्च रिपोर्ट नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में छपी है. रिसर्च में कछुओं की 50 प्रजातियों के साथ ही तीन और बेहद अनोखे जीवों की रिकॉर्डिंग है जिन्हें मूक समझा जाता है. इनमें एक लंगफ़िश मछली की एक प्रजाति है, जिसमें गलफड़ के साथ ही फेफड़े भी होते हैं. इनकी मदद से यह मछली ज़मीन पर भी ज़िंदा रहती है. इसके बाद, दूसरी प्रजाति है एक उभयचर की जो सांप और कीड़े के हाइब्रिड जैसा है.

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रिसर्च टीम ने न्यूज़ीलैंड में मिलने वाले एक दुर्लभ सरीसृप की आवाज़ भी रिकॉर्ड करने में कामयाबी हासिल की है, इसे टुआटारा कहा जाता है. यह रिंकोसिफ़ेलिया ऑर्डर का अकेला जीवित बची प्रजाति है. कभी ये धरती के कोने-कोने में फैले थे. ये सभी जानवर गले से आवाज निकालते हैं जैसे कि किट-किट या फिर चहचहाना या इसी तरह की कुछ और. हालांकि, ज़रूरी नहीं है कि ये आवाज़ें बहुत तेज़ हों. कई जानवर दिन भर में ये आवाज़ें कुछ ही बार निकालते हैं.

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करोड़ों साल पुराना साझा पूर्वज

रिसर्चरों की टीम ने अपनी खोज को 1800 दूसरी प्रजातियों के अकूस्टिक कम्यूनिकेशन के उत्पत्ति के इतिहास के आंकड़ों के साथ मिलाया. इसके बाद, उन्होंने “पैतृक अवस्था पुनर्रचना” नाम के विश्लेषण का इस्तेमाल कर ये संभावना तलाशी कि इसका पुराने समय के जीवों से क्या संबंध है. पहले ये समझा गया था कि चार पैरों वाले जानवर और लंगफ़िश के कंठ से निकलने वाला संवाद अलग-अलग रूप से विकसित हुआ है. हालांकि योर्गविच-कोहन का कहना है,

अब हमने इसका उल्टा देखा है, वे सब एक ही जगह से आते हैं. हमने देखा है कि इस ग्रुप का एक साझा पूर्वज है जो पहले से ही आवाज़ निकाल रहा था और उन आवाजों को जान बूझ कर संवाद में इस्तेमाल कर रहा था.

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इनका ये साझा पूर्वज कम से कम 40.7 करोड़ साल पहले पुराजीवी काल में पृथ्वी पर जी रहा था. अमेरिका की एरिज़ोना यूनिवर्सिटी में इवॉल्यूशनरी बायोलॉजी के प्रोफ़ेसर जॉन वीन्स का कहना है कि,

लंगफ़िश और चौपाया जीवों में एक साझे पूर्वज से ध्वनि संवाद का उदय होना काफ़ी दिलचस्प और हैरान करने वाली खोज है.

आवाज और संवाद

वीन्स इस रिसर्च में शामिल नहीं थे लेकिन 2020 में उनकी एक रिसर्च रिपोर्ट छपी थी जिसका नाम था, “कशेरुकी जीवों में ध्वनि संवाद का उद्भव.” उन्होंने नये जीवों के लिए मिले आंकड़ों का स्वागत किया है. उन्होंने यह भी कहा है कि संभव है कि रिसर्च में,

आवाज़ निकालने वाले जीव और वास्तविक ध्वनि संवाद के बीच अनिवार्य अंतर” ना किया गया हो.

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योर्गविच-कोहेन का कहना है कि रिसर्चरों ने खासतौर से संवाद में निकाले जाने वाली आवाज़ों की पहचान के लिए वीडियो और ऑडियो रिकॉर्डिंग की तुलना की और ख़ास व्यवहार का पता लगाया. इसके लिए जानवरों के अलग-अलग समूहों की भी रिकॉर्डिंग की गई, जिससे कि ये पता लगाया जा सके कि वे ख़ास परिस्थितियों में कैसी आवाज़ें निकालते हैं.

उन्होंने ये स्वीकार किया कि कुछ प्रजातियों का अध्ययन काफ़ी मुश्किल था, क्योंकि वे जल्दी-जल्दी आवाज़ नहीं निकालते और थोड़े शर्मीले हैं.

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