यूं तो शवरमा एक ऐसी डिश है जो मिडल ईस्ट में काफ़ी फ़ेमस है, लेकिन इंडिया में भी इसके चाहने वालों की कमी नहीं. नॉनवेज़ लवर्स इसे बहुत ही चाव से खाते हैं. दिल्ली हो या मुंबई या फिर देश का कोई और राज्य हर जगह पर आप शवरमा का स्वाद चख सकते हैं.
शवरमा का इतिहास भी इसके जितना ही लज़ीज़ है. चलिए आज आपको मिडल ईस्ट से भारत आई इस डिश का इतिहास भी बता देते हैं.
शवरमा शब्द की उत्पत्ति तुर्की शब्द सिविरमे से हुई है. ये मीट को घूमा-घूमा कर बनाने की तकनीक़ है. शवरमा को घुमा-घुमा कर बनाया जाता है. इसलिए इसका नाम शवरमा पड़ गया. शवरमा को कुछ लोग शोरमा भी कहते हैं.
पहली बार शवरमा किसने बनया ये क्लीयर नहीं है. लेकिन अधिकतर लोगों का मानना है कि पहली बार शवरमा तुर्की साम्राज्य में बनाया गया था. तब इसे भेड़ के मीट से बनाया जाता था. उनके साम्राज्य के फैलाव के साथ ही ये अफ़्रीका, यूरोप और फिर एशिया महाद्वीप में फैल गया.
20वीं सदी में लेबनानी लोग इसे मेक्सिको लेकर पहुंचे. मीट को रोटेट कर बनाने की ये तकनीक वहां के लोगों को बहुत पसंद आई. उन्होंने इसकी मदद से एक नई डिश बनानी शुरू कर दी जिसे Tacos Al Pastor कहा जाता है. आज शवरमा पूरी दुनिया का फ़ेवरेट स्ट्रीट फ़ूड बन गया है.
तुर्की में अलग-अलग प्रकार से शवरमा बनाया जाता है. डोनर कबाब वहां का फ़ेमस शवरमा है. ग्रीस में इसे गाइरोस कहते हैं. भारत में भी चिकन शवरमा हर गली-नुक्कड़ में खाने को मिल जाता है. यहां पर इसे अधिकतर ब्रेड यानी रोटी के अंदर रख कर सर्व किया जाता है. इसका नाम सुनते ही नॉनवेज लवर्स के मुंह में पानी आज जाता है.
अगली बार जब शवरमा खाना तो इसका इतिहास भी अपने दोस्तों से शेयर कर देना.
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