अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अक्सर बैंकों के डूबने के मामले आते रहे हैं. इस बीच अमेरिका के सिलिकॉन वैली बैंक (Silicon Valley Bank) के डूबने से पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है. अमेरिका में बीते कुछ हफ़्तों में 3 दिग्गज बैंक डूब चुके हैं. सिलिकॉन वैली बैंक (Silicon Valley Bank) के अलावा सिल्वरगेट कैपिटल (Silvergate Capital Corp) और सिग्नेचर बैंक (Signature Bank) को भी ‘न्यूयॉर्क स्टेट फ़ाइनेंशियल रेगुलेटर्स’ ने बंद कर दिया है. इसके अलावा स्विटज़रलैंड का बैंक क्रेडिट सुईस (Credit Suisse) भी डूब जाने के बाद देश के सबसे बड़े बैंक यूनियन बैंक ऑफ़ स्विटज़रलैंड (Union Bank of Switzerland) ने इसका अधिग्रहण कर लिया है.
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ऐसे में अक्सर लोगों के दिमाग़ में सवाल उठता है कि आख़िर बैंक कैसे और कब डूबता है? इस स्थिति में ग्राहकों की जमा पूंजी का क्या होता है? क्या बैंक के डूब जाने के साथ ही उनका पैसा भी डूब जाता है या फिर उन्हें पैसा मिल जाता है? अगर मिलेगा तो कितना पैसा मिलता है?
बैंक का डूबना किसे कहते है?
अगर किसी बैंक के पास अपने दायित्वों के भुगतान के लिए पैसा नहीं बचा है या दिवालिया हो गया है तो इसे ‘बैंक का डूबना’ कहा जाता है. बैंक के डूबने का सबसे बड़ा कारण उसकी संपत्ति से ज़्यादा देनदारी को माना जाता है. ऐसे में निवेशक पैसा खींचना शुरू कर देते हैं और बैंक की हालत ख़राब हो जाती है. बैंक के डूबने के बाद तत्काल प्रभाव से ग्राहकों के जमा रकम निकालने पर पाबंदी लगा दी जाती है. ग्राहकों के बैंक से संबंधित डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड और ऑनलाइन बैंकिंग भी बंद कर दी जाती है. इसके बाद किसी डूब चुके बैंक से जमा रकम निकालने में ग्राहकों को लंबा समय लग जाता है.
किसी बैंक के डूबने की स्थिति में बैंक रेगुलेटर दिवालिया बैंक को बंद करने का फ़ैसला लेता है. इस फ़ैसले को बैंक ‘फ़ेल्योर’ कहा जाता है. दरअसल, किसी भी देश की करेंसी कंट्रोलर के पास राष्ट्रीय बैंक को बंद करने के अधिकार होते हैं. अगर कोई बैंक अपने जमाकर्ताओं और अन्य लोगों के प्रति अपने दायित्वों को पूरा नहीं कर पाता है तो ऐसी स्थिति में करेंसी कंट्रोलर के पास उसे बंद करने का अधिकार होता है.
बैंक के डूबने पर फ़िक्स पैसा मिलने की लिमिट
दरअसल, अगर कोई बैंक बंद हो जाता है तो उसके ग्राहकों की न्यूनतम जमाराशि बीमित रहती है. केंद्र सरकार ने इसके लिए विशेष प्रावधान किया हुआ है. केंद्र सरकार ने डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन (DICGC) क़ानून के तहत डूबने वाले बैंक के ग्राहकों की 5 लाख रुपये तक की जमा राशि सुरक्षित की है. भले ही आपका जमा अमाउंट कितना ही क्यों न हो लेकिन बैंक के डूबने पर आपको 5 लाख रुपये से ज़्यादा की रकम नहीं मिल सकती. अगर आपके बैंक खाते में 5 लाख रुपये जमा हैं तो आपको केवल 1 लाख रुपये ही मिलने की उम्मीद है.
भारतीय ग्राहकों के पैसे डूबने का रिस्क कम
भारत में अब तक किसी बड़े बैंक के डूब जाने का इतिहास तो नहीं है, जिसकी वजह से बड़ी मात्रा में खाताधारकों का पैसा डूबा हो. लेकिन रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) पिछले कुछ सालों में वित्तीय अनियमितताएं पाए जाने पर कुछ सहकारी और छोटे बैंकों का लाइसेंस ज़रूर रद्द कर चुका है. इसके अलावा कई बड़े बैंकों पर मोटा जुर्माना भी लगा चुका है. भारत में अगर किसी बैंक के डिफ़ॉल्ट करने की स्थिति आती भी है तो उसका किसी केंद्रीय बैंक में विलय कर दिया जाता है. इस दौरान ये सुनिश्चित किया जाता है कि खाताधारकों के हित किसी भी तरह से प्रभावित न हों.
भारत में क्यों नहीं डूब सकते बड़े बैंक?
भारत में SBI, HDFC और ICICI देश के 3 सबसे बड़े बैंक माने जाते हैं. इन्हें बैंकों पर देश की अर्थव्यवस्था टिकी हुई है. अगर इनमें से एक भी बैंक डूबता है तो भारत को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है. लेकिन रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) ने इन बैंकों को सिक्योर करने के लिए इन्हें D-SIB लिस्ट में रखा है. इसका मतलब है इनके डूबने का ख़तरा न के बराबर होना. इन तीनों बैंकों को देश का सबसे सिक्योर बैंक माना जाता है क्योंकि भारत सरकार हर हाल में इन्हें डूबने नहीं दे सकती.
आख़िर क्या है D-SIB?
दरअसल, साल 2008 में आर्थिक मंदी के दौरान दुनिया के कई देशों के बड़े बैंक डूब गए थे, जिसकी वजह से लंबे समय तक आर्थिक संकट की स्थिति बनी रही थी. तब भारत सरकार ने D-SIB (Domestic Systematically Important Bank) की शुरुआत की थी. देश के बड़े बैंकों को D-SIB घोषित करने का फ़ैसला लिया गया था. साल 2015 से RBI हर साल D-SIB बैंकों की लिस्ट जारी करता आ रहा है. साल 2015 और 2016 में केवल SBI और ICICI बैंक ही D-SIB थे. जबकि साल 2017 से HDFC को भी इस लिस्ट में शामिल किया गया है.
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