Last Railway Station of India: आप सभी ने ट्रेन से यात्रा तो की ही होगी, लेकिन क्या आपने कभी ये जानने की कोशिश की कि भारत का आख़िरी रेलवे स्टेशन (Last Railway Station of India) कौन सा है और कहां है? बता दें कि भारत के आख़िरी रेलवे स्टेशन का नाम सिंहाबाद रेलवे स्टेशन (Singhabad Railway Station) जो पश्चिम बंगाल के मालदा ज़िले के हबीबपुर में स्थित बांग्लादेश की सीमा सटा है. देश का ये आख़िरी रेलवे स्टेशन दशकों पहले ‘कोलकाता और ढाका’ के बीच संपर्क स्थापित किया करता था, लेकिन आज पूरी तरह से वीरान पड़ा हुआ है. इस स्टेशन पर आज कोई भी यात्री ट्रेन नहीं रुकती.
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अंग्रेज़ों के जमाने में बना ये सिंहाबाद रेलवे स्टेशन (Singhabad Railway Station) आज भी वैसा का वैसा ही है, जैसा अंग्रेज़ इसे छोड़ कर गए थे. चलिए जानते हैं आख़िर ये वीरान क्यों पड़ा है?
रेलवे बोर्ड लिखा है ‘भारत का अंतिम स्टेशन’
अगर आप कभी ‘सिंहाबाद रेलवे स्टेशन’ गए हों तो आपने रेलवे बोर्ड पर ‘भारत का अंतिम स्टेशन’ लिखा हुआ देखा होगा. ये स्टेशन इसलिए भी ख़ास है क्योंकि यहां पर सिग्रल, संचार और स्टेशन से जुड़े सारे उपकरण, टेलीफोन और टिकट आज भी अंग्रेज़ों के समय के ही हैं. सिग्नल के लिए हाथ के गियरों का इस्तेमाल किया जाता है. यात्री ट्रेन न रुकने की वजह से यहां टिकट काउंटर हमेशा बंद रहता है. स्टेशन पर कर्मचारी गिने चुने ही हैं. स्टेशन के नाम पर सिर्फ छोटा सा स्टेशन ऑफिस नजर आता है.
Last Railway Station of India
गांधी और बोस ने भी किया है इस रूट का इस्तेमाल
ब्रिटिश राज में ये इलाका ‘उत्तरी पूर्वी रेलवे’ का महत्वपूर्ण इलाका हुआ करता था. तब सिंहाबाद रेलवे स्टेशन ‘कोलकाता से ढाका’ के बीच संपर्क स्थापित करने का मुख्य ज़रिया था. उस दौर में ढाका जाने के लिए इसी रूट का इस्तेमाल किया जाता था. महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस भी इस रूट से कई बार गुजरे थे. एक जमाना था जब ‘दार्जिलिंग मेल’ जैसी ट्रेन यहां से गुजरा करती थीं, लेकिन आज के समय में यहां कोई यात्री ट्रेन नहीं रुकती.
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क्यों ख़ास है ये स्टेशन?
सिंहाबाद रेलवे स्टेशन में आज भी सबकुछ अंग्रेज़ों के ज़माने का है. यानि सिगनल, संचार और स्टेशन से जुड़े सभी उपकरण तक. यहां अब भी वो टिकट रखे हुए हैं, जो कार्डबोर्ड के होते थे. यहां ट्रेनों के आने जाने की संचार प्रणाली के लिए जो टेलीफ़ोन है वो भी बाबा आदम के ज़माने का है, जो शायद ही दुनिया में कहीं प्रचलन में हो. इसी तरह सिगनल के लिए हाथ के बने गेयरों का इस्तेमाल होता है. इस स्टेशन के बैरियर भी बेहद पुराने हैं. देश के दूसरे स्टेशनों से ये प्रणाली हटे कई दशक हो चले हैं.
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बांग्लादेश बनने के बाद हुआ था समझौता
दरअसल, भारत-पाक बंटवारे के बाद इस रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों की आवाजाही पूरी तरह से बंद कर दी गई थी, लेकिन सन 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद भारत और बांग्लादेश के बीच इस रुट से यात्रा की मांग उठने लगी. आख़िरकार सन 1978 में दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ. इस समझौते के बाद भारत से बांग्लादेश आने और जाने के लिए इस रूट पर यात्री ट्रेन तो नहीं, लेकिन मालगाड़ियां ज़रूर चलने लगीं.
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साल 2011 में समझौते में संशोधन करके इसमें नेपाल को भी शामिल कर लिया गया. आज बांग्लादेश के अलावा नेपाल जाने वाली सभी मालगाड़ियां इसी स्टेशन से होकर गुजरती हैं. इसके अलावा यहां से दो यात्री ट्रेनें ‘मैत्री एक्सप्रेस’ और ‘मैत्री एक्सप्रेस 1’ भी गुजरती हैं, लेकिन रुकती नहीं हैं. साल 2008 में ‘कोलकाता से ढाका’ के लिए ‘ शुरू हुई मैत्री एक्सप्रेस’ 375 किलोमीटर का सफर तय करती है. वहीं दूसरी ट्रेन इसी साल शुरू हुई है, जो कोलकाता से बांग्लादेश के एक अन्य शहर खुलना तक जाती है.
चलिए अब वीडियो के ज़रिए भी देख लीजिये-
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