पार्ले-जी (Parle G) भले ही आज के बच्चों के लिए एक सिर्फ एक बिस्किट हो. हम 90s के बच्चों के लिए सिर्फ़ बिस्किट नहीं बल्कि बचपन है, दोस्त है, साथी है और यादें है. जब चाय अधूरी लगती थी तो पार्ले जी ही उसे पूरा करता था. जब पापा 2 रुपये देते थे पैर तेज़ी से दुकान की तरफ़ पार्ले जी लेने दौड़ते थे. जब कभी दादी के साथ दुकान जाते थे तो पार्ले जी लेकर आते थे. पार्ले जी से ज़िंदगी जुड़ी है. इसके बारे में क्या कहें? इस बिस्किट ने मन को ही नहीं बल्कि दिलों को जीता है.
पार्ले जी (Parle G) के स्वाद और अपनेपन की तो ख़ूब चर्चा होती है मगर इसमें बनी छोटी बच्ची भी चर्चा का विषय बनी रहती है. कई बार सवाल उठाए जाते हैं कि ये बच्ची कौन है? इस बारें में कई कयास लगाए जा चुके हैं आज उन सभी अटकलों से पर्दा उठाते हुए हम आपको बताएंगे कि छोटी सी, प्यारी सी बच्ची कौन है?
इसकी शुरुआत 1929 में स्वदेशी आंदोलन के बीच, चौहान परिवार के मोहनलाल दयाल ने मुंबई के विले पार्ले में पहली फ़ैक्ट्री खोलकर की थी. इससे पहले साल 1928 में, मोहनलाल ने ‘House of Parle’ की स्थापना की. इसका नाम Vile Parle उपनगर के नाम पर रखा गया था. इन्होंने सबसे पहले ग्लूकोज़, शुद्ध चीनी और दूध से बनी मिठाई, पेपरमिंट और टॉफ़ी का प्रोडक्शन शुरू किया था. ‘House of Parle’ में परिवार के सदस्यों के साथ सिर्फ़ 12 पुरुष काम करते थे. ये लोग स्वयं ही इंजीनियर, मिठाई बनाने का काम और उत्पादों की पैकेजिंग करते थे.
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फिर साल 1938 में पार्ले ने अपना पहला प्रोडेक्ट ‘पार्ले ग्लूको’ (Parle Gluco) लॉन्च किया. ये बिस्किट सस्ता होने की वजह से काफ़ी बिका और भारतीयों की पहली पंसद बन गया. ये भारतीय बिस्किट ब्रिटिश-ब्रांड वाले बिस्किट के लिए भारत की ओर से जवाब था. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश-भारतीय सेना ने इसकी बहुत मांग की. 1940 के दशक की शुरुआत में, पार्ले ने भारत का पहला Salted Cracker-Monaco का उत्पादन किया.
इतनी बिक्रीी के बावजूद भी 1947 में देश के बंटवारे के बाद पार्ले ग्लूको के उत्पादन को गेहूं की कमी के कारण रोकना पड़ा. तब तक मार्केट में कई और बिस्किट ग्लूको के नाम से आ गए. इसलिए अपनी पहचान ख़त्म होते देख पार्ले ने गेहूं की जगह जौ से बिस्किट बनाना शुरू किया. 1940 के आख़िर तक, पार्ले ने उस समय दुनिया का सबसे लंबा ओवन बनाया, जो 250 फ़ीट लंबा था. पार्ले की रीब्रांडिंग कर इसे पार्ले ग्लूको नहीं बल्कि 80 के दशक में ‘Parle-G’ नाम से मार्केट में उतारा. इसकी पैकेजिंग में भी बदलाव किया गया है सफ़ेद और पीले रंग की पट्टियों वाले पैकेट बनाए गए और अब बारी थी पैकेट पर ‘Parle-G Girl’ को बनाने की, जिसे हम आज भी पैकेट पर देखते हैं.
इस बच्ची के बारे में बहुत सारी कहानियां हैं. कोई कहता है कि नीरू देशपांडे हैं तो कोई कहता है गुंजन गुंदानिया. अब ख़बरें आ रही हैं कि ये इंफोसिस फ़ाउंडेशन (Infosys Foundation) की चेयरपर्सन सुधा मूर्ति (Sudha Murthy) की बचपन की तस्वीर है.
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आख़िरकार, पार्ले प्रोडक्ट्स के ग्रुप प्रोडक्ट मैनेजर मयंक शाह ने सच्चाई से पर्दा उठा दिया है. उन्होंने बताया कि,
कवर पर मौजूद लड़की कोई वास्तविक बच्ची नहीं थी बल्कि 1960 के दशक में एवरेस्ट क्रिएटिव के प्रतिभाशाली कलाकार मगनलाल दहिया द्वारा बनाई गई सिर्फ़ एक तस्वीर थी.
पार्ले जी की बच्ची को लेकर आपके मन में जितने सवाल थे उनके जवाब शायद आपको मिल गए होंगे.