पिता के लकवाग्रस्त हो जाने के बाद, उनकी बार्बर शॉप को चलाने के लिए दो बहनों ने धरा लड़कों का भेष

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आमिर खान की फ़िल्म दंगल का वो डायलॉग याद आ गया ‘म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के’. बिलकुल सही कहा छोरियां छोरों से किसी भी मामले में कम नहीं है. आज दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियों की कमान महिलाओं के हाथ में है. परिस्तिथियां चाहे कैसी भी क्यों न हो महिलायें उनका डटकर सामना करने के मामले में पुरुषों से बेहतर होती हैं.

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उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ज़िले की दो बहनों ने भी तमाम तरह की परेशानियों और सामाजिक बंदिशों को तोड़ते हुए देशभर की लड़कियों के सामने महिला सशक्तीकरण की मिसाल पेश की है. ज्योति (18) और नेहा (16) मुश्किल हालातों के बावजूद अपने परिवार की ख़ुशी के लिए वो काम कर रहीं हैं जिसे सिर्फ़ पुरुषों का पेशा माना जाता है.

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कुशीनगर ज़िले के पडरौना थाना क्षेत्र के गांव बनवारी टोला की रहने वाली ज्योति और नेहा पिछले चार सालों से अपने लकवाग्रस्त पिता की ‘बार्बर शॉप’ को संभाल रही हैं. इस छोटी सी दुकान में सिर्फ़ पुरुष ही बाल व दाढ़ी कटाने आते हैं. ये दोनों बहनें बिना किसी झिझक के लोगों के बाल काटकर अपने घर का ख़र्चा और बीमार पिता का इलाज़ करा रही हैं.

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दरअसल, साल 2014 में इनके पिता ध्रुव नारायण पैरालिसिस के शिकार हो गए थे. उस वक़्त ज्योति और नेहा मात्र 13 और 11 साल की थीं. ध्रुव नारायण गांव में ही दाढ़ी-बाल बनाने की छोटी सी दुकान लगाया करते थे और इसी से उनके परिवार का भरण पोषण होता था. पिता के लकवाग्रस्त हो जाने के बाद घर चलाना मुश्किल हो रहा था. लड़कियां बाल काटने का काम करेंगी ये परंपरा के ख़िलाफ़ था लेकिन दोनों बहनों के पास दुकान संभालने के अलावा और कोई चारा भी नहीं था.

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इसके बाद नेहा और ज्योति ने कुछ ऐसा किया जिसे देखकर हर कोई हैरान रह गया. लोग ये न समझें कि लड़कियां बाल काट रही हैं इसलिए दोनों बहनों ने इससे बचने के लिए लड़कों की तरह कपड़े पहनना शुरू कर दिया और अपने बाल भी छोटे करवा लिए. ज्योति और नेहा प्रतिदिन लगभग 10 से 12 घंटे के लिए दुकान खोले रखती हैं. ताकि घर के ख़र्चे और पिता की बीमारी के लिए ज़्यादा से ज़्यादा पैसा कमा सकें. इतने घंटे काम करने के बावजूद वो मुश्किल से 300 से 400 रुपये तक ही कमा पाती हैं.

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इन तमाम मुश्किलों के बावजूद ज्योति और नेहा को न तो रिश्तेदारों से न ही प्रशासन की तरफ़ से कोई मदद मिली. लेकिन जब ये ख़बर सोशल मीडिया पर वायरल होने लगी तब जाकर ज़िला प्रशासन हरक़त में आया.

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कुशीनगर के सब डिविजनल मैजिस्ट्रेट (एसडीएम) अभिषेक पांडे और स्थानीय विधायक मणि त्रिपाठी बीते रविवार को उनसे मिलने पहुंचे. इस दौरान अभिषेक पांडे ने अपनी जेब से दोनों बहनों को 1600 और 1000 रुपये दिए.

एसडीएम अभिषेक पांडे ने कहा, ये मदद सिर्फ़ लड़कियों को प्रोत्साहित करने के लिए है. दोनों बहनों को वित्तीय सहायता दिलाने की सिफ़ारिश के लिए हम ज़ल्द ही राज्य सरकार को पत्र लिखेंगे, ताकि बेहतर जीवन के लिए ये दोनों अपना ब्यूटी पार्लर खोल सकें. 

Source: theguardian

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