भारत का वो अजीब गांव जहां नाम से नहीं बल्कि सीटी बजाकर एक-दूसरे को बुलाया जाता है

Nripendra

यात्रा करना और विभिन्न संस्कृतियों के बारे में पढ़ना इसलिए भी ज़रूरी है ताकि आप इस धरती पर मौजूद कई अनोखी और हैरान कर देने वाली चीजों के बारे में भी जान पाएं. वैसे यह संसार ही अद्भुत और हैरान कर देने वाली चीज़ों से भरा पड़ा है. इस कड़ी में हम आपको भारत के एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहें है, जो अपनी एक अजीबो-ग़रीब विशेषता की वजह से पूरे विश्व भर में जाना जाता है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में एक ऐसा भी गांव है जहां लोग एक दूसरे को नाम से नहीं बल्कि सीटी बजाकर बुलाते हैं. आइये, जानते हैं इस गांव की पूरी कहानी.

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व्हिसलिंग विलेज

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दोस्तों, इस गांव का नाम है ‘कांगथान’, जिसे व्हिसलिंग विलेज (Whistling Village) के नाम से भी जाना जाता है. यह भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय में स्थित है. यह पूरे विश्व भर में एकमात्र ऐसा गांव है, जहां लोग एक दूसरे को नाम से नहीं बल्कि सीटी बजाकर बुलाते हैं. इसी वजह से इस गांव को व्हिसलिंग विलेज के नाम से जाना जाता है. यह जानकर आपको थोड़ा अजीब लग सकता है लेकिन यह हक़ीक़त है.   

हर एक शख़्स के लिए ख़ास धुन

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आपके मन में यह सवाल तो ज़रूर आया होगा कि भीड़ में अगर किसी ख़ास शख़्स को बुलाना है, तो सीटी एक अच्छा माध्यम कैसे हो सकती है, क्योंकि सीटी की आवाज़ को कोई इग्नोर भी कर सकता है या कोई दूसरा व्यक्ति इस पर अपनी प्रतिक्रिया दे सकता है. दरअसल, गांव में रहने वाले हर शख्स के लिए अलग तरह की सीटी की धुन का प्रयोग किया जाता है. उस धुन को सुनकर वो ही व्यक्ति प्रतिक्रिया देगा, जिसे बुलाया जा रहा है. है न दिलचस्प! 

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627 सीटी की धुनें  

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व्हिसलिंग विलेज में 109 परिवार रहते हैं और इस गांव की कुल जनसंख्या 627 हैं, यानी इस गांव में व्यक्तियों को बुलाने के लिए 627 धुनों का इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि, यह संख्या थोड़ी कम-ज़्यादा हो सकती है.  

संस्कृति का हिस्सा   

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सीटी से व्यक्ति को बुलाना यहां की संस्कृति का हिस्सा है. यहां व्यक्तियों के दो नाम रखे जाते हैं, एक आम नाम जो सभी का होता है और दूसरा सिटी वाला नाम. सीटी की धुन बाल्यावस्था के दौरान ही मां द्वारा तय की जाती है. जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होते जाता है, वो इस धुन को पहचानने लगता है और यह धुन उसकी पहचान में शामिल हो जाती है.   

प्रकृति से प्रभावित

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मन में सवाल आ सकता है कि इतनी सारी धुनें वो भी अलग-अलग कैसे रखी जाती हैं. दरअसल, ये धुनें प्रकृति से प्रभावित होती हैं. इनमें ज़्यादातर चीड़ियों की आवाज़ें शामिल होती हैं. 

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