सर्दी के मौसम में सुबह और शाम को एक अलग कॉम्प्टीशन चलता है, मुंह से भाप निकालने का. बहुत से लोग होंगे जिन्होंने बचपन में तो इस कॉम्प्टीशन को जीता ही होगा, बड़े पर भी ये जंग जारी होगी, लेकिन कभी सोचा है कि सर्दी में मुंह में भाप कहां से आ जाती है और गर्मी में ये कहां चली जाती है?
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हालांकि, हम इसे खेल में लेते हैं इसके प्रति ज़्यादा गंभीर नहीं होते हैं, लेकिन ऐसा होने के पीछे एक साइंटिफ़िक रीज़न है, जिसके तहत हम सांस में ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन-डाई-ऑक्साइड छोड़ते है. सांस छोड़ते समय फेफड़ों से CO2 के अलावा नाइट्रोजन, थोड़ी मात्रा में ऑक्सीजन, ऑर्गन और थोड़ी नमी भी निकलती है.
हमारे शरीर में इन गैसों के अलावा नमी कहां से आती है?. तो इसका जवाब है कि ये नमी मुंह और फेफड़ों से आती है. इसका कारण ये है कि हमारे फेफड़ों से नमी आती है और हमारा मुंह गीला होता है, इसलिए जब हम सांस छोड़ते हैं तो थोड़ी सी नमी भी भाप के रूप में बाहर आती है.
आइये अब आपको भाप निकलने की इस प्रक्रिया को पदार्थ की तीनों अवस्था ठोस, द्रव और गैस के आधार पर समझाते हैं. विज्ञानं के अनुसार पानी का ठोस रूप बर्फ़, द्रव रूप पानी और गैस रूप में भाप होता है. मुंह से भाप निकलना H2O के अणुओं की मज़बूती के कारण होता है क्योंकि बर्फ में ये अणु मज़बूती से, द्रव यानी पानी में कम मज़बूती से और गैस यानी भाप में सबसे कम मज़बूती से जुड़े होते हैं.
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आपको बता दें कि गैसीय अवस्था में इन अणुओं में ज़्यादा ऊर्जा होती है. साइंस कहता है कि, मुंह से भाप निकलना द्रव और गैस के बीच की अवस्था होती है. ये एक तरह से द्रवित गैस होती है.
सर्दियों में हमारे शरीर का तापमान 36 से 37 डिग्री सेल्सियस होता है और बाहर का तापमान शरीर के तापमान से कम होता है. इसलिए जब हम सांस छोड़ते हैं तो सांस के रूप में निकलने वाली नमी के अणुओं की ऊर्जा कम होने लगती है और वो पास आ जाते हैं, फिर द्रव या ठोस अवस्था में बदलने लगती है, तब मुंह से भाप निकलती दिखती है. साइंस के अनुसार, जहां तापमान शून्य से नीचे चला जाता है, वहां मुंह से निकलने वाली भाप बर्फड में बदलने लगती है.
गर्मियों में हमारे शरीर और बाहर का तापमान एक सा रहता है. ऐसे में जब नमी हमारे शरीर से निकलती है तो उसके अणुओं की गतिज ऊर्जा कम नहीं होती है और वो दूर ही रहते हैं, जिससे नमी गैसीय अवस्था में ही रहती है. इसी वजह से ये नमी, भाप या पानी की बूंदों में नहीं बदल पाती. अब इसको ऐसे समझिए जहां हमारे शरीर का तापमान और बाहर का तापमान एक सा रहेगा वहां पर हमारे मुंह से भाप नहीं निकलती है. जैसे, बंद घरों में या फिर छत पर धूप में.