आख़िर क्यों नहीं होता राष्ट्रीय ध्वज़ों में बैंगनी रंग का इस्तेमाल? जानें इसके पीछे की वजह

Abhay Sinha

किसी भी देश का राष्ट्रीय ध्वज, वो निशान होता है जिसके लिए लोग अपनी जान तक देने को तैयार हो जाते हैं. हर देश का ध्वज अलग होता है और उसमें अलग-अलग रंगों का इस्तेमाल होता है. ये रंग उस देश की परंपराओं और ख़ासियत से जुड़े होते हैं. मसलन, भारत का तिरंगा, जिसमें केसरिया, सफ़ेद और हरे रंग का इस्तेमाल हुआ है. जो क्रमश: साहस और बलिदान, शांति और पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक हैं. 

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ऐसे ही दुनियाभर के देश भी अपने ध्वज में विभिन्न रंगो का इस्तेमाल करते हैं. मगर आपने कभी किसी राष्ट्रीय ध्वज में बैंगनी रंग (Purple Colour in National Flags) का इस्तेमाल पाया है? शायद ही आपने कभी ऐसा होते हुए देखा हो. क्योंकि बैंगनी रंग का इस्तेमाल राष्ट्रीय ध्वजों में बेहद दुर्लभ है. 

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आपको बता दें, इसके पीछे वजह कोई भी अंधविश्वास नहीं है. बल्कि ये एक वक़्त की मजबूरी थी. दरअसल, साल 1800 तक बैंगनी रंग को बनाना बेहद कठिन और महंगा हुआ करता था. क्योंकि, बैंगनी रंग को सिर्फ़ प्राकृतिक तरीक़े से ही हासिल किया जा सकता था.

उस वक़्त बैंगनी रंग लेबनान के छोटे समुद्री घोंघे से पाया जाता था, जिसे जुटाना काफ़ी मुश्किल होता था. इस बात का अंदाज़ा आप ऐसे लगा सकते हैं कि अगर किसी को एक ग्राम बैंगनी रंग चाहिए, तो उसके लिए 10 हजार से ज्यादा घोंघे मारने पड़ते थे. उस वक़्त बैंगनी रंग की क़ीमत सोने से भी ज़्यादा थी.

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ऐसे में बैंगनी रंग का इस्तेमाल व्यवहारिक नहीं था. महंगा होने के कारण बैंगनी रंग उस वक़्त स्टेटस सिंबल भी बन गया था. इंग्लैंड की तरफ़ से तो शाही फ़रमान ही आ गया था कि बैंगनी रंग सिर्फ़ रॉयल फ़ैमिली ही पहन सकेगी. ऐसे में बैंगनी रंग शागी बैंगनी के तौर पहचाना जाने लगा. 

हालांकि 1856 में एक ब्रिटिश स्टूडेंट विलियन हेनरी पर्किन, सिंथेटिक बैंगनी डाई बनाने में क़ामयाब हो गया. जिसके बाद बैंगनी रंग की क़ीमतें कम होने लगीं. साथ ही, प्रोडक्शन बढ़ने के बाद इस रंग तक आम लोगों की भी पहुंच हो गई. मगर इसके बावजूद भी देशों ने इस रंग का ध्वजोंं में 19वीं सदी तक इस्तेमाल नहीं किया. 

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साल 1900 के बाद ही बैंगनी रंग राष्ट्रीय ध्वज पर आया. आज भी महज़ तीन ही मुल्क हैं, जिनके ध्वज पर इस रंग का इस्तेमाल हुआ है. ये देश निकारागुआ, डॉमिनिका और रिपब्लिक ऑफ़ स्पेन हैं. 

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