जानिए कैसे मिलता है Whiskey को उसका सुनहरा रंग और क्या ये नैचुरली होता है?

Abhay Sinha

हेल्थ के लिए है रिस्की, मगर फिर भी हर शराबी को पसंद व्हिस्की (Whiskey). अब क्या कीजिएगा, इसका नाम सुनते ही लबरे शराबियों के मुंह से लार टपक जाती है. इसका सुनहरा रंग तो मानो शराबियों की ज़िंदगी में रंगीनी की वजह बना हुआ है. मगर सवाल ये है कि आख़िर व्हिस्की का गोल्डन रंग आता कैसे है? क्योंकि, दूसरी शराब का तो ये रंग नहीं होता. 

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तो क्या व्हिस्की का ये रंग किसी कलर को मिलाने से आता है या फिर नैचुरली वो ऐसा है? आज हम आपको इसी सवाल का जवाब देंगे. (Why Whisky Colour is Golden?)

व्हिस्की के रंग (Whiskey Colour) के पीछे है ड्रम

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जब व्हिस्की तैयार होती है, तो उसका रंग पानी जैसा ही होता है. मगर उस वक़्त ये मार्केट में नहीं उतारी जाती. पहले उसे एक वुडेन बैरल यानि लकड़ी के ड्रम में स्टोर किया जाता है. इस ड्रम की वजह से ही व्हिस्की का रंग सुनहरा हो जाता है. जो व्हिस्की जितने ज़्यादा वक़्त तक ड्रम में रहेगी, उतना ही ज़्यादा उसका रंग डार्क होता जाएगा. धीरे-धीरे ये सुनहरे से भूरे रंग में बदलती भी नज़र आएगी. 

ड्रम में रखने से रंग क्यों बदलता है?

इसके पीछे वजह है इन ड्रम्स को बनाने का तरीका. दरअसल, जिस लकड़ी से ये ड्रम तैयार होता है, उसे थोड़ा टोस्ट किया जाता है. मतलब है कि हलका सा गर्म किया जाता है, जिससे ये सॉफ़्ट हो जाता है. एक तरीका चारिंग भी है. इसमें ड्रम को अंदर से जलाया जाता है. इससे अंदरूनी हिस्से की सतह जल जाती है. इससे एक अलग फ़्लेवर तैयार होता है. 

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अब सवाल ये है कि व्हिस्की का रंग इसमें कैसे बदल जाता है. तो बता दें, जब इस वुडेन बैरल को सूरज की रौशनी में रखा जाता है, तो बैरल में मौजूद व्हिस्की बाहर निकलने की कोशिश करती है. इससे जो वुडेन बैरल का अंदरूनी हिस्सा है, उसकी सतह में पूरी तरह से व्हिस्की दाखिल होने लगती है. फिर रात के वक़्त इसका उलटा होता है. लकड़ी सिकुड़ने लगती है, तो अंदर गई व्हिस्की बाहर वापस निकलने लगती है. 

ये प्रक्रिया सालों-साल तक चलती रहती है. इसी के ज़रिए व्हिस्की, बैरल का रंग, उसका फ़्लेवर वगैहर अपने में भी खींच लेती है. जितना ज़्यादा वक़्त तक ये प्रोसेस चलेगा, व्हिस्की का रंग भी उतना ही डार्क होगा. ये तरीका नैचुरल होता है. 

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रंग भी मिलाते हैं लोग

कहते हैं कि व्हिस्की का रंग जितना डार्क होगा, उतनी वो अच्छी होगी. क्योंकि, उसके रंग से ही पता चलता है कि कितनी वो पुरानी है. ये बात पीने वाले भी जानते हैं और बनाने वाले भी. ऐसे में कंपनियां व्हिस्की को डार्क रंग देने के लिए उसमें केरेमल कलर का इस्तेमाल भी करती हैं. साथ ही, इससे एक ब्रांड को शराब का रंग एक जैसा बनाए रखने में भी मदद मिलती है. 

ज़्यादातर व्हिस्की ब्रांड्स में केरेमल कलरिंग की जाती है. ये आपको शराब की बोतल पर लिखा भी मिल जाएगा. 

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