राजस्थान के कोटा में लगातार हो रही नवजात बच्चों की मौत थमने का नाम नहीं ले रही है. कोचिंग सिटी के नाम से मशहूर कोटा के ‘जेके लोन अस्पताल’ में स्वास्थ्य सेवाएं इतनी बदतर हैं कि केवल दिसंबर माह में ही यहां 100 नवजातों की मौत हो चुकी है.
29 दिसंबर तक 91 बच्चों की मौत के बावजूद न तो अस्पताल प्रबंधन न ही राज्य सरकार ने कोई फ़ैसला लिया. अस्पताल की कई मशीनें ख़राब होने के चलते अगले दो दिनों के अंदर ही 9 अन्य नवजातों की मौत हो गई.
इतनी बड़ी घटना होने के बावजूद अस्पताल प्रशासन ने ये कहते हुए ज़रा भी संवेदनशीलता नहीं दिखाई कि साल 2018 में 1,005 नवजातों की मौत हुई थी, जबकि 2019 में तो इसके मुक़ाबले बेहद कम मौतें हुई हैं. वहीं नवजातों की मौत की मुख्य वजह जन्म के समय उनका कम वजन होना रहा.
आख़िर क्यों हो रही है नवजातों की मौत?
दरअसल, जेके लोन अस्पताल में आवश्यक और जीवन रक्षक श्रेणियों में आने वाले 60 फ़ीसदी से अधिक उपकरण काम नहीं कर रहे हैं. एक बिस्तर पर दो-तीन बच्चों को रखा जाता है. पर्याप्त संख्या में नर्सों की भी कमी है. अस्पताल परिसर में सूअर घुमते हुए पाए जाते हैं.
अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही
‘जेके लोन अस्पताल’ प्रबंधन लापरवाही व उदासीनता की इतनी हद है कि अस्पताल प्रबंधन का कोई भी अधिकारी इस बात पर ध्यान नहीं देता कि कुछ उपकरणों को फिर से ठीक किया जा सकता है. नतीजतन कई नेबुलाइजर, वॉर्मर और वेंटिलेटर काम नहीं कर रहे हैं. कई जीवन रक्षक उपकरण धूल फ़ांक रहे हैं, जो चल रहे हैं उन्हें भी जुगाड़ के सहारे चलाया जा रहा है.
इससे पहले ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ राज्य सरकार को इस मामले में कारण बताओ नोटिस जारी कर चुका है.
अधिकारियों के मुताबिक दिसंबर के आख़िरी दो दिनों में ही यहां 9 बच्चों की मौत हो गई. इसके साथ ही मरने वालों का आंकड़ा बढ़कर 100 तक पहुंच गया है.
बीते मंगलवार को सांसद लॉकेट चटर्जी, कांता कर्दम और जसकौर मीणा वाली भाजपा संसदीय समिति के एक दल ने भी अस्पताल का दौरा किया. इस दौरान उन्होंने अस्पाताल के इंफ़्रास्ट्रक्चर पर चिंता जताते हुए कहा कि अस्पताल परिसर में सूअर घुमते हुए पाए गए. एक बिस्तर पर दो-तीन बच्चों को रखा जाता है. अस्पताल में पर्याप्त संख्या में नर्सों की कमी है.
अस्पताल के सुप्रिटेंडेंट के मुताबिक़, नवजातों की मौत का मुख्य कारण उनका जन्म के वक्त कम वजन होना है.