महामारी की मार: परिवार के लिए छोड़ी पढ़ाई, सड़कों पर ठेला लगा फल बेचने को मजबूर 13 साल का मासूम

Ishi Kanodiya

जब से दुनिया कोरोना वायरस की चपेट में आई है लाखों लोगों की नौकरी चली गई है. बिहार के बेगुसराय का ये परिवार भी ऐसा ही परिवार है जो इस महामारी का शिकार है.  

जब सुबह के 8 बजे बाकी बच्चे अपने फ़ोन की स्क्रीन पर ऑनलाइन क्लास ले रहे होते हैं तब उनका एक सहपाठी कन्हैया नोएडा के सेक्टरों में फल बेच रहा होता है.  

2 साल पहले, कन्हैया के पिता की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी. पिता रिक्शा चलाते थे. इसके बाद नोएडा के एक NGO ने, कन्हैया का दाख़िला एक प्राइवेट स्कूल में करा दिया. कन्हैया की मां, मीना Geriatric मरीज़ों (बुढ़ापे का शिकार) की मालिश करती थी. बड़ा भाई रमन एक ऑटो चालक था. जब लॉकडाउन चालू हुआ तो कन्हैया कि मां की तबियत काफ़ी बिगड़ने लगी वहीं भाई का धंधा भी बंद हो गया. ऐसे में अप्रैल से कन्हैया ने काम करना चालू कर दिया. 

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कन्हैया ने बताया कि पड़ोसियों से 1,000 हज़ार रुपये उधर लेने के बाद उन्होंने एक ठेला ख़रीदा. बड़ा भाई सूरज उगने से पहले मंडी जाकर फल लेकर आता है. और उसके बाद कन्हैया वो फल बेचने सुबह 6 बजे से ही नोएडा के सेक्टर 25, 26, 30 और 31 निकल जाते हैं.  

कन्हैया का घर सेक्टर 31 में निठारी गांव में पड़ता है. कन्हैया, मां मीना, भाई रमन, उसकी बीवी और एक साल का बच्चा सब एक कमरे के घर में रहते हैं. आर्थिक तंगी के चलते कन्हैया का परिवार, बीते तीन महीनों से कमरे का किराया भी नहीं दे पाया है.  

TOI से की गई बात में मीना ने बताया, “सरकार द्वारा किए गए वादे के अनुसार, हमें प्रवासी मज़दूर होने पर कोई राहत नहीं मिली. हमसे दो महीने के राशन का वादा किया गया था, मगर कुछ नहीं मिला.”

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मीना वैसे तो मालिश के द्वारा प्रति क्लाइंट 300 रुपये कमा लेती थी. मगर जनवरी में पेट में अलसर होने के कारण उनकी हालत इतनी ख़राब हो गई की उनका सांस लेना भी मुश्किल हो जाता था जिसके बाद काम करना उनके लिए बेहद मुश्किल था.  

वहीं, बड़ा भाई रमन पिछले 2-3 सालों से ऑटो चलाकर परिवार का पेट पालता था जो कि लॉकडाउन के चलते बंद पड़ गया. ऐसे में अप्रैल के महीने में कन्हैया को ही घर का पेट पालने के लिए आगे आना पड़ा.  

कन्हैया बताते हैं, “मेरे दोस्त बताते हैं कि ऐसे पढ़ना बहुत मुश्किल हो जाएगा. मैं बहुत सारी चीज़ें मिस कर रहा हूं. मंगलवार को फल मंडी बंद रहती है तो मैं उस एक दिन में पढ़ने की कोशिश करता हूं. मुझे पता है इतना काफ़ी नहीं है. मगर मैं पढ़ाई नहीं छोड़ना चाहता हूं.”  

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