मजबूरी इंसान से वो काम भी करवा सकती है जिसकी लोग कल्पना भी नहीं कर सकते. जैसा इस 15 साल की लड़की ने किया है. वो अपने घायल पिता को साइकिल पर बैठाकर हरियाणा से बिहार ले आई. वो क़रीब 1200 किलोमीटर का सफ़र तय कर एक सप्ताह बाद बिहार के दरभंगा ज़िले के अपने गांव पहुंची है.
लॉकडाउन के चलते कई कठिनाइयों से गुज़र रहे मज़दूरों में से एक हैं इस लड़की के पिता मोहन पासवान. इनकी बेटी का नाम ज्योति है और वो 7वीं क्लास में पढ़ती हैं. लॉकडाउन के बाद उनके पिता जो एक रिक्शा चालक हैं, उनका काम ठप हो गया. इसी बीच उनके पिता के पैर में चोट भी लग गई.
रिक्शा के मालिक को रिक्शा वापस करना पड़ा और किराया न भरने के कारण मकान मालिक ने भी उन्हें घर खाली करने को कह दिया. अब उनके पास घर वापस लौटने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था. गुरुग्राम से बिहार का सफ़र कैसे किया जाए अब ये भी एक समस्या थी. तब उन्होंने एक ट्रक ड्राइवर से बात की. उसने उन्हें दरभंगा तक पहुंचाने के लिए 6000 रुपये की डिमांड की. उनके पास इतने पैसे नहीं थे तो इसलिए उन्हें ट्रक से यात्रा करने का ख़्याल छोड़ना पड़ा.
इसके बाद किसी तरह उनके पिता ने 500 रुपये में एक साइकिल का जुगाड़ किया. फिर ज्योति उन्हें साइकिल पर लेकर ही बिहार की ओर निकल पड़ी. वो क़रीब 12000 किलोमीटर का सफ़र तय कर दरभंगा पहुंची. उन्होंने अपनी यात्रा 10 मई को शुरू कि थी और वो 16 मई को अपने गांव सिरहुली पहुंची. ज्योति जब अपने पिता के साथ गांव पहुंची तो उन्हें अपने पिता के साथ गांव के एक स्कूल में क्वारन्टीन सेंटर में रहने को कहा गया.
उनके पिता वहीं पर हैं लेकिन अकेली लड़की होने के चलते अधिकारियों ने उन्हें घर में ही क्वारन्टीन में रहने को कहा है. जब ज्योति से पूछा गया कि उन्हें साइकिल से यात्रा करने के दौरान डर नहीं लगा, तो उन्होंने कहा- ‘मुझे हाईवे पर साइकिल चलाते हुए डर नहीं लगा क्योंकि हमारे जैसे हज़ारों मज़दूर सड़क पर चल रहे थे. बस मुझे इस बात का डर था कि कहीं कोई गाड़ी हमें पीछे से टक्कर न मार दे.’
उन्होंने ये भी बताया कि रास्ते में वो राहत शिविरों में मिला भोजन खाते थे. कुछ भले लोगों ने भी उन्हें खाना-पानी देने में मदद की. वो पेट्रोल पंप पर रात को आराम करने के लिए रुकती थीं.
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