98 की उम्र में मास्टर्स करने वाले इस बुज़ुर्ग का अगला मिशन ग़रीबी, बेरोज़गारी हटाना है. सलाम इन्हें!

Sumit Gaur

अकसर आपने लोगों को कहते सुना होगा कि पढ़ने-लिखने की कोई उम्र नहीं. लोगों के इस कथन को 98 वर्षीय राज कुमार वैश्य सच करते हुए दिखाई देते हैं. दरअसल उत्तर प्रदेश के बरेली के रहने वाले राज कुमार ने हाल ही में नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में द्वितीय श्रेणी के साथ MA किया है. 

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उनका जन्म 1920 में हुआ था. 1934 में दसवीं पास करने के बाद उन्होंने 1938 में इकोनॉमिक्स के साथ अपनी ग्रेजुएशन पूरी की. इसके बाद राज कुमार LLB करने में व्यस्त हो गए और 1940 में वकालत पास की. ये वही दौर था, जब सारा देश अंग्रेज़ों के जुल्मों से तंग हो चुका था और देश में उनके ख़िलाफ़ प्रदर्शनों का दौर हो रहे थे.

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नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार एस. पी. सिन्हा का कहना है कि ‘वो बिलकुल आम छात्रों की तरह ही पेपर देने आये थे. उन्होंने कभी अपनी उम्र का लाभ उठाने की कोशिश नहीं की.’राज कुमार के तीन बेटे हैं और तीनों ही सेंट्रल गवर्मेंट को अपनी सेवाएं दे चुके हैं.

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राजकुमार का कहना है कि ‘जिस समय देश आज़ाद हुआ था मैंने गरीबी हटाओ का नारा सुना था. ये नारा आज भी मुझे अच्छी तरह से याद है. मैंने अपने बेटे से कहा है कि वो मेरे लिए अपने कैमरे से झोपड़पट्टियों की कुछ तस्वीरें खींचे, जिन पर मैं आर्टिकल और कविताएं लिखना चाहता हूं. इन कविताओं को मैं अख़बारों में भेजूंगा, जो मेरी तरफ़ से उसी नारे को समर्पित होंगी.’

अपनी कामयाबी के पीछे राजकुमार अपनी छोटी बहू का हाथ बताते हैं, जो पटना में हिस्ट्री की प्रोफ़ेसर हैं. राजकुमार के पास होने के बाद उनके घर में जश्न का माहौल है. उनके पोते-पोतियां और बच्चे मिठाइयां बांट कर खुशियां मना रहे हैं.

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