अपने पेशे की प्रतिष्ठा को कायम रखते हुए एक डॉक्टर ने बचाई जच्चा-बच्चा की जान

Rashi Sharma

पिछले साल ओडिशा के कालाहांडी ज़िले के भवानीपटना में दाना मांझी नमक व्यक्ति को अपनी पत्नी के शव को कंधे पर रखकर 12 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा था क्योंकि उनके पास एम्बुलेंस को देने के लिए पैसे नहीं थे. इस घटना की पूरी दुनिया में निंदा की गई थी. लेकिन इस घटना के बाद देश के कई इलाकों से इस तरह की घटनाएं सामने आयीं थी, जिनमें एंबुलेंस नहीं मिलने पर मरीज के परिजन उसे कंधे पर उठाकर या किसी अन्य साधन से खुद ही अस्पताल ले गए. ऐसे जा मामले इन बीते दिनों खबरों में आये थे. लेकिन आज हम आपको जो ख़बर बताने जा रहे हैं, वो इससे बिलकुल उलट है, जहां एक डॉक्टर ने बचाई एक गर्भवती महिला की जान.

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ये घटना ओेडिशा के एक पिछड़े और नक्सल प्रभावित जिले मलकानगिरी की है. मलकानगिरी के एक अस्पताल में कार्यरत डॉक्टर ओंकार होता द्वारा किये गए इस सराहनीय काम की फ़ोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. दरअसल, सारगेटा गांव में डिलीवरी के बाद शुभम मारसे नाम की एक महिला को लगातार ब्लीडिंग हो रही थी और अगर उसे तुरंत ही हॉस्पिटल में एडमिट नहीं किया जाता तो उसकी जान भी जा सकती थी. पीड़िता की जान बचाने को डॉक्टर ओंकार उसे उसके पति के साथ डोली में लाद कर 10 किमी पैदल चलकर अपने पीएचसी पहुंचे. उसके बाद उस महिला का लगभग 18 घंटे तक ट्रीटमेंट चला. तब जाकर महिला और उसका बच्चा खतरे से बाहर आये.

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आपकी जानकारी के लिए बता दें कि चित्रकोंडा सीएचसी के अंतर्गत आने वाला पीएचसी जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी की दूरी पर स्थित है. पिछले साल मार्च के महीने में डॉ. ओंकार की पोस्टिंग यहां हुई थी. बीती तारीख 31 अक्टूबर को दोपहर के करीब एक बजे उनके पास सारगेटा गांव से एक फ़ोन आया, जिस पर उनको पीड़ित महिला के बारे में सूचना दी गई और बताया गया कि उसकी हालत गंभीर है. सूचना मिलते ही डॉ. होता सहकर्मी रामा पांगी के साथ बाइक से सारगेटा पहुंचे.

वहां उन्होंने देखा कि प्रसव के बाद शुभम को काफी ब्लीडिंग हो रही थी और उसे तत्काल अस्पताल ले जाना जरूरी था. पहाड़ी इलाके में बसे गांव से सीएचसी पापलूर पहुंचने तक सड़क नहीं होने से महिला को खाट की डोली में लिटाकर ही अस्पताल पहुंचाया जा सकता था. डॉ. होता ने ग्रामीणों से मदद मांगी पर कोई आगे नहीं आया. ग्रामीणों ने परंपरा का हवाला देकर महिला को छूने से इन्कार कर दिया. तब डॉ. होता ने इस जिम्मेदारी को खुद ही उठाने की ठानी और महिला के पति के साथ उसे खाट की डोली में लिटाकर पैदल 10 किमी दूर पीएचसी पहुंचे.

वो कहते हैं न कि एक डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया जाता है, तो इस बात को सौ फीसदी सच साबित कर दिखाया है डॉक्टर ओंकार होता ने. उन्होंने अपने कर्म और फ़र्ज़ के बीच दकियानूसी बातों और किसी भी तरह की मुश्किल को बाधा नहीं बनने दिया. डॉक्टर ओंकार के इस जज़्बे को सलाम.

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