माता-पिता के घर पर बेटे का कोई कानूनी अधिकार नहीं, उनकी दया पर ही रह सकते हैं बेटे- हाई कोर्ट

Bikram Singh

इस देश में रहने वाले सभी ‘बेटों’ को मैं बताना चाहता हूं कि आप अभी से अपने मां-बाप की सेवा में लग जाएं, नहीं तो अनर्थ हो जाएगा. और हां…मेरी बातों को हल्के में लेने की कोशिश भूल कर ना करें, नहीं तो आप अपने घर में हल्का भी नहीं हो पाएंगे. ख़ैर, अब मुद्दे पर आता हूं. माननीय दिल्ली उच्च न्यायलय के अनुसार, बेटे (विवाहित या अविवाहित) का अपने माता-पिता के घर में रहने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है. वह केवल अपने माता-पिता की दया पर ही घर में रह सकता है.

क्यों बेटों! अब आई बात समझ में? अगर आपका व्यवहार और संबंध सौहार्दपूर्ण है, तभी आपके पैरेंट्स आपको अपने घर में शरण देंगे. अन्यथा बाहर का दरवाजा हमेशा खुला रहेगा आपके लिए.

TOI

यह टिप्पणी दिल्ली हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति की याचिका रद्द करते हुए की. न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी की पीठ के समक्ष याची सचिन ने निचली अदालत के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें अदालत ने घर को लेकर उसके माता-पिता (राजदेवी-झब्बूलाल) के हक़ में फैसला सुनाया था.

देखा जाए तो अदालत का ये फैसला बुज़ुर्गों के लिए काफ़ी लाभदायक है. जिन बेटों को लगता है कि वे बड़े हो गए हैं, उनको बता देना चाहता हूं कि ‘बाप, बाप ही होता है.’

Source: TOI

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