पति के देहांत से टूटने के बाद भी अपना फ़र्ज़ निभाने लौटी ये डॉक्टर बचा रही है कई बच्चों की जान

Sumit Gaur

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के एक मशहूर भाषण का अंश कुछ इस तरह है कि ‘विपदाएं आयेंगी-जायेंगी, पर ये हिम्मत नहीं टूटनी चाहिए.’ अटल जी के इसी वक्तव्य को महाराष्ट्र की रहने वाली डॉ. प्रीति इंग्ले जाधव ने सच कर दिखाया है.

2 साल पहले प्रीति के पति विनोद की मौत एक रोड एक्सीडेंट के दौरान हांफने से हो गई थी. विनोद के एक्सीडेंट के समय प्रीति ने एम्बुलेंस से ले कर डॉक्टर और दोस्तों तक को कॉल किया, पर विनोद को नहीं बचा पाई. उस समय प्रीति और विनोद महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के अकोला में पिछले 10 सालों से अपनी सेवाएं दे रहे थे और शहर की तरफ़ नया ठिकाना बनाने की तलाश में थे.

पति के जाने के बाद भी प्रीति ने हिम्मत नहीं हारी और वापस काम की तरफ़ लौट आई. अभी वो मानसिक रूप से खुद को काम करने के लिए तैयार करने की कोशिश कर ही रही थीं कि 5 दिन के एक ऐसे बच्चे का केस आया, जिसे ले कर उसके मां-बाप हर तरह की आशा खो चुके थे.

प्रीति का कहना है कि ‘वो नवजात लगभग मर ही चुका था. उसके शरीर में यूरिया और क्रिएटिन का लेवल बहुत ज़्यादा था.’ इस बाबत प्रीति ने मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्ट डॉ. आरती कुलवाल से बात की, जिसके बाद उन्होंने नवजात की ज़िम्मेदरी खुद के हाथों में ले ली.

इस बारे में प्रीति का कहना है कि ‘मैं नहीं जानती कि मुझे क्या हुआ? शायद उस बच्चे को देखकर मुझे विनोद की याद आ गई. जैसे विनोद के समय मैं असहाय थी वैसे ही इस बच्चे के मुझे माता-पिता भी मुझे असहाय नज़र आ रहे थे.’ पिछले 5 दिनों से बच्चे ने खाना-पीना छोड़ रखा था, जिसकी वजह से उसका पेशाब भी नहीं आ रहा था. प्राइवेट हॉस्पिटल बच्चे के इलाज के लिए 4 लाख रुपये मांग रहे थे, जो एक किसान परिवार के लिए बहुत बड़ी रकम थी. आखिरकार उन्होंने बच्चे को Lady Harding हॉस्पिटल में एडमिट कराया.

इस तरह के केस में Peritoneal Dialysis (PD) की ज़रूरत पड़ती है, पर हॉस्पिटल के पास PD ही मौजूद नहीं थी. PD एक तरह का डायलिसिस डिवाइस होता है, जिसकी मदद से शरीर के अंदर जमा हुए रासायनिक द्रव्य को बाहर निकला जाता है. प्रीति इस बच्चे को ले कर इतना जुड़ चुकी थी कि उन्होंने खुद ही इस सर्जरी से जुड़ी चीज़ों और PD किट को 600 रुपये में खरीद कर मंगवाया और बच्चे का इलाज किया. इस सर्जरी के होने के बाद भी हर घंटे बच्चे को देखने के लिए जाती. इस दौरान वो लगातार दो रातों तक सो भी नहीं पाई. बच्चे की हालत में सुधार होने के बाद उसे हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया. एक समय जिस बच्चे का बचना नामुमकिन-सा लग रहा था, उस बच्चे को 8 महीने बाद रेगुलर चेकअप के दौरान एक आयुष नाम का बच्चा उनके पास आया, जिसकी मां को देख कर प्रीति की आंखें नम हो गई कि इसी बच्चे को बचाने के लिए उन्होंने दिन-रात एक कर दिया था.

आयुष के अलावा भी प्रीति 8 ऐसी ही अन्य बच्चों की जान भी बचा चुकी हैं, जो उनके पास इमरजेंसी के दौरान लाये गए थे. जॉन्डिस से ग्रसित एक बच्चे का खून बदलने के समय भी प्रीति ऐसे ही पल-पल उसकी निगरानी करती रही थीं.

इतने बड़े हादसे से गुज़रकर खुद को मजबूत करना और उसके बाद भी दूसरों की मदद के लिए तैयार करना कोई आसान काम नहीं है. बेशक डॉक्टर होने की वजह से प्रीति अपना फ़र्ज़ निभा रही हों, पर उनका ये काम इंसानियत की सच्ची सेवा से कम नहीं.

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