नोटबंदी को पूरा हुआ एक साल, लेकिन आपको पता है क्या हुआ 500 और 1000 के नोटों का हाल?

Vishu

आज नोटबंदी की पहली सालगिरह है. जहां ज़्यादातर लोग इस फ़ैसले के बाद कराह रहे हैं वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो वाह कर रहे हैं. लेकिन देश भर से रातों-रात गायब हुए 500 और 1000 के नोट आखिर कहां चले गए, क्या आपने कभी सोचा है? 

केंद्र सरकार के इस चौंकाने वाले फ़ैसले के एक साल बाद, सैंकड़ों टन 500 और 1000 के नोट, दक्षिण अफ़्रीका के चुनाव में इस्तेमाल होने के लिए पहुंच चुके हैं. कन्नूर में स्थित वेस्टर्न इंडियन प्लाइवुड लिमिटेड नाम की एक कंपनी पिछले नवंबर से ही इन नोटों को रिसाइकिल कर रही है ताकि उन्हें दक्षिण अफ़्रीका में होने वाले चुनावों के लिए इस्तेमाल किया जा सके.

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इस कंपनी के मार्केटिंग हेड पी महबूब ने कहा कि दक्षिण अफ़्रीका में 2019 में आम चुनाव होने वाले हैं और 500 और 1000 के नोटों से बने हार्ड बोर्ड्स को चुनाव के कैंपेन के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. हमारी कंपनी को रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के रिजनल ऑफ़िस से 800 टन की करेंसी प्राप्त हुई थी. आरबीआई का ये ऑफ़िस तिरूवनंतपुरूम में स्थित है.

वेस्टर्न इंडिया प्लाईवुड लिमिटेड कंपनी का निर्माण 1945 में हुआ था. ये कंपनी कन्नूर के उत्तरी जिले वालापट्टनम में स्थित है. कंपनी प्लाइवुड, ब्लॉक बोर्ड्स और फ़्लश डोर जैसी चीज़ों का निर्माण भी करती है.

महबूब ने बताया कि ‘सबसे पहले ये नोट आरबीआई के पास पहुंचे, आरबीआई ने इन्हें पूरी तरह से टुकड़े-टुकड़े किया और फिर हमें भेज दिया. हमारे पास ऐसी कई मशीनें मौजूद हैं जिनसे पूरी तरह से चकनाचूर हो चुके नोटों को Pulp तैयार किया जा सकता है. हार्ड और सॉफ़्ट बोर्ड्स बनाने के लिए लकड़ी के पल्प में 5 से 15 प्रतिशत इन नोटों के टुकड़ों का इस्तेमाल हुआ. हमने इन हाई क्वालिटी करेंसी को पल्प करने के लिए थर्मोमैकेनिकल पल्पिंग तकनीक का इस्तेमाल किया.’

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महबूब का कहना था कि ‘कंपनी यूं तो पिछले कई दशकों से प्लाइवुड मैन्युफ़ैक्चरिंग के क्षेत्र में स्थापित है लेकिन इतने बड़े स्तर पर इन नोटों के साथ प्रयोग करना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है. आमतौर पर आरबीआई ऐसी किसी भी स्थिति में नोटों को जला दिया करती है लेकिन इस बार नोटों की संख्या इतनी ज़्यादा थी कि इन्हें रिसाइकिल करने का फ़ैसला किया गया. इस कंपनी ने एक टन के लिए आरबीआई को 200 रुपये की कीमत अदा की है. ये कंपनी अपने मैन्यूफ़ैक्चर्ड गुड्स को कई अफ़्रीकी देशों और गल्फ़ देशों में भेजती है, हार्डबोर्ड्स सस्ते और किफ़ायती होते हैं, ऐसे में इनका इस्तेमाल कई चीज़ों के लिए किया जाता है. लेकिन ऐसा पहली बार होगा कि कंपनी के हार्ड बोर्ड्स में इंडियन करेंसी का इस्तेमाल हुआ हो.’

केंद्र सरकार के इस फ़ैसले की भले ही देश के कई हिस्सों में आलोचना हो रही हो लेकिन कम से कम दक्षिण अफ़्रीका को भारत के इस फ़ैसले से ज़रूर फ़ायदा हुआ है.

Source: TheNewsminute

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