Tribal Watch: गुजरात के दो आदिवासियों ने बनाई उल्टी चलने वाली घड़ी, दाईं से बाईं ओर घूमती हैं सुइयां

Abhay Sinha

Anti-Clockwise Wristwatch: घड़ी की सुइयां हमेशा अपनी राइट साइड पर घूमती हैं. यही क्लॉकवाइस (Clockwise) मूवमेंट होता है. मगर गुजरात के दो आदिवासियों ने ऐसी घड़ी तैयार की है जो उल्टी दिशा में चलती है. यानि घड़ी की सुइयां लेफ़्ट साइड घूमती (Anti-Clockwise) हैं. इसे ‘आदिवासी घड़ी’ (Tribal Watch) नाम दिया गया है. कांग्रेस विधायक अनंत पटेल ने नवसारी के सर्किट हाउस में इस घड़ी को लॉन्च किया.

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इस Tribal Watch को आदिवासी एकता परिषद में बेचने के लिए भी रखा जाएगा. 13 से 15 जनवरी के बीच गुजरात के छोटा उदयपुर में आदिवासियों के लिए आयोजित होने वाले 3 दिवसीय कार्यक्रम में इसे ब्रिकी के लिए रखा जाएगा.

कहां से आया Anti-Clockwise Wristwatch बनाने का आइडिया?

रिपोर्ट के मुताबिक, इस घड़ी को तापी के डोलवन तालुका के निवासी और सोशल एक्टिविस्ट प्रदीप पटेल उर्फ ​​​​पिंटू ने अपने दोस्त भरत पटेल के साथ मिलकर बनाया है. उन्होंने बताया, मैंने दोस्त विजयभाई चौधरी के घर पर पुरानी घड़ी देखी वो उल्टी दिशा में घूम रही थी. मेरे पूछने पर उन्होंने बताया है ये प्रकृति का चक्र है जो दाएं से बाएं तरफ चलता है. इसी बात ने मुझे ऐसी घड़ी बनाने के लिए प्रेरित किया.

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इसके बाद उन्होंने ट्राइबल वॉच बनाने के लिए भरत पटेल की मदद ली. वो घड़ी की दुकान में काम करते रहे हैं. दोनों ने मिलकर इसे तैयार करने का काम किया. कई महीनों तक रिसर्च करने के बाद पिछले साल दिसम्बर में घड़ी को तैयार किया गया.

आदिवासी परंपरा पर आधारित है Tribal Watch

ट्राइबल वॉच में सेकंड, मिनट और घंटे की सुई उल्टी दिशा में घूमती है.  प्रदीप ने अब तक ऐसी एक हज़ार घड़ियां बनाई हैं. बता दें, इस घड़ी का जो मॉडल तैयार किया है उसमें बिरसा मुंडा की तस्वीर के साथ नीचे कैप्शन लिखा है- जय आदिवासी.

इस घड़ी को बनाने के पीछे की वजह बताते हुए प्रदीप कहते हैं, ये प्रकृति के अनुसार चलती है. ये प्रकृति का चक्र है. सूर्य के चारों ओर घूमने वाले सभी ग्रह दाएं से बाएं चलते हैं, इसलिए घड़ी भी ऐसी तैयार की है. इतना ही नहीं, आदिवासियों के नृत्य में होने वाला मूवमेंट भी दाईं से बाईं तरफ़ होता है. हमारे आदिवासी समाज में परंपराएं दाईं से बाईं घूमते हुए पूरी की जाती हैं.

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बता दें, कहा जाता है कि गुजरात में रिवर्स घड़ियों का चलन नया नहीं है, क्योंकि ये आदिवासी संस्कृतियों में विभिन्न मान्यताओं पर आधारित है. जहां कुछ लोग कहते हैं कि ये घड़ी प्रकृति के नियम का प्रतीक है क्योंकि आदिवासी इसकी पूजा करते हैं. वहीं, कुछ कहते हैं कि ये पृथ्वी के विनाश की गारंटी है और जैसे-जैसे घड़ी की ये सुइयां पीछे की ओर बढ़ती हैं, वो क्षण भी निकट आ रहा है.

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