कोरोनाकाल में हुई आशा वर्कर्स की हालत ख़राब, कम वेतन और असुरक्षा के बीच जोख़िम में डाल रहे हैं जान

Ishi Kanodiya

दिल्ली, मुंबई, केरल, गुजरात ये सभी शहर कोरोना वायरस के संक्रमण से काफ़ी बुरी तरह प्रभावित हैं. अगर इन शहरी क्षेत्रों की तुलना ग्रामीण इलाक़ों से की जाए तो आप देखेंगे की गांवों के हालात इतने भी बुरे नहीं है. और इसका पूरा श्रेय फ़्रंटलाइन में खड़ी महिला योद्धाओं यानि ‘आशा वर्कर्स’ को जाता है.  

आशा वर्कर्स ग्रामीण इलाक़ों में घर-घर जाकर लोगों की जांच करती हैं और कोरोना के बारे में लोगों को जागरूक भी करती हैं. प्रतिदिन 14 घंटे का ये काम बेहद थकाऊ और मेहनत भरा होता है.  

तस्वीरों के ज़रिए देखें चुनौतियों से घिरी किसी है कोरोना काल में आशा वर्कर्स की ज़िंदगी 

आशा वर्कर्स घर-घर जा कर लोगों के तापमान की जांच करती हैं. साथ ही ये पता लगती हैं की क्या उन लोगों या उनके परिवार के किसी भी सदस्य में कोरोना के कोई भी लक्षण है. वो उनकी ट्रैवल हिस्ट्री के बारे में भी पूछती हैं क्योंकि ज़्यादातर लोग प्रवासी मज़दूर हैं जो शहरों में लॉकडाउन होने की वजह से फंस गए थे.   

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आशा वर्कर निर्मला, अलका और मिनाक्षी मेरठ के पास बहादरपुर गांव के लोगों की जांच करती हुई. ये सभी आशा वर्कर्स बिना कोई PPE किट और मास्क के लोगों की जांच करती हैं. न केवल कई आशा वर्कर्स वायरस के संक्रमण से असुरक्षित हैं बल्कि उनकों वेतन भी समय पर नहीं दिया जाता है.   

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विशाखापट्नम के आवासीय इलाक़े में इखट्टा डॉक्टर्स और आशा वर्कर्स. पूरे भारत में लाखों आशा वर्कर्स बुनियादी स्वास्थ्य सेवा और कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई दोनों के लिए तैनात की गई हैं. 

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Covid-19 पॉज़िटिव मामलों का पता लगाने के बाद केंगरी, बंगलोर के पास लोगों की जांच करते आशा वर्कर और स्वास्थ्य कर्मी. 

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भारत में कोरोना मरीज़ों का आंकड़ा 5 लाख के पार होने पर आशा वर्कर्स की ज़िम्मेदारियां और बढ़ा दी गई हैं. नवी मुंबई के स्लम इलाक़ों में कोरोना के मरीज़ों का पता लगाती और उन्हें जागरूक करती आशा वर्कर्स. राज्य मंत्रिमंडल ने 1 जुलाई से आशा कार्यकर्ताओं को 2,000 रुपये तक का वेतन वृद्धि देने का फ़ैसला किया है. महाराष्ट्र में 65,740 आशा कार्यकर्ता हैं. 

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नागपुर के पार्वती नगर में जांच करती आशा वर्कर. ऐसे कई मामले आए हैं जब आशा कार्यकर्ताओं पर ग्रामीणों द्वारा शारीरिक हमला किया गया है. ग्रामीणों को लगता है की ये कार्यकर्ता वायरस फैला रहे हैं या सरकारी जासूस हैं. 

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फूलों से आशा कार्यकर्ताओं का सम्मान करते निवासी. बेंगलुरु के भारती नगर के निवासियों ने इलाके में काम क्र रही आशा वर्कर्स को फ़ूड किट दिया है जिसमें चावल और सब्जियां हैं.     

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बेंगलुरु में रसेल मार्केट के पास चांदनी चौक रोड पर पुलिस और आशा कार्यकर्ताओं ने 34 वर्षीय निवासी को कोरोना पॉज़िटिव पाने के बाद एरिया को सील कर दिया. भारत में कॉन्ट्रैक्ट ट्रेसिंग की कमी को देखते हुए, आशा कार्यकर्ता, COVID-19 के खिलाफ भारत की लड़ाई में “महत्वपूर्ण तत्व” हैं, प्रमुख स्वास्थ्य विशेषज्ञ अनंत भान का कहना.  

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COVID-19 के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए, आशा कार्यकर्ता देश भर में पर्चे बांटती हुईं. 

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रुपयों की कमी के चलते कई बार आशा वर्कर्स को अपने घर पैदल चल कर जाना पड़ता है या वायरस के डर से भी वो सार्वजनिक वाहन लेने से परहेज़ करती हैं. 

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आशा वर्कर, सुभद्रा जो की घर- घर जाकर स्वास्थ्य की जांच करती हैं, संपर्क ट्रेसिंग और संदिग्ध मामलों को आंध्र प्रदेश के अस्पताल भी पहुंचाती हैं. इन आशा वर्कर्स को कई किलोमीटर बार गांवों तक पैदल चल कर जाना पड़ता है. 

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