हरी-हरी वादियों के बीच बर्फ़ का ये नज़ारा भले ही आपका दिल लुभा रहा हो, लेकिन असल में ये एक ख़तरे की घंटी है. ये दृश्य बेंगलुरु की बेलंदूर झील का है. सर्दी हो, गर्मी हो या फिर मानसून, यहां के लोगों के लिए ये देखना बेहद आम और परेशानी भरा है. वहीं नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की फ़टकार के बाद भी इसे लेकर राज्य सरकार की तरफ़ से कोई कड़ा कदम नहीं उठाया गया.
क्या है मामला?
बीते सोमवार को हुई भारी बारिश के कारण शहर के कई इलाके पानी से डूबे हुए हैं. इसके साथ ही बेलंदूर झील में बड़ी मात्रा में बना झाग, सड़कों तक पहुंचा चुका है, जिस वजह से लोगों को काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा रहा है. रिपोर्ट के अनुसार, झील का पानी बेहद गंदा है और हर सीज़न में इससे गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं. गर्मी में इससे आग निकलने की ख़बरे सामने आती हैं, तो वहीं मानसून में झील का झाग सड़कों तक फैला हुई नज़र आता है.
Bellandur Rising की मेंबर सीमा का कहना है कि झील को बचाने के लिए 50 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया. NGT ने अगस्त से अक्टूबर तक सुनवाई स्थगित कर दी है. झील से निकलती आग या झाग चर्चा का विषय बन जाता है, लेकिन इसका हल क्या है? ये सब यहां के निवासियों के लिए बेहद निराशाजनक है.
वहीं स्थानीय निवासियों के अनुसार, भूजल प्रदूषण के कारण उन्हें त्वचा रोग की समस्या से भी जूझना पड़ रहा है, लेकिन राज्य सरकार के लिए मुद्दा गंभीर नहीं है. यही नहीं, BWSSB की ग़लती के कारण बेलंदूर झील में रोज़ना कई करोड़ लीटर सीवर का पानी गिरता है. हांलाकि, उम्मीद की जा रही है कि 2020 तक STP का कार्य पूरा हो जाएगा.
सुंदर झीलों के लिए जाने वाले बेंगलुरू शहर की ये हालत बेहद चिंतजनक है और उससे भी ज़्यादा निंदनीय है सरकार का ऐसा ढीला रवैया.
Source : Thenewsminute
Feature Image Source : Indiatoday