30 साल की प्रिया पिछले 10 सालों में लिख चुकी हैं 657 एग्ज़ाम, पर अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए

Sumit Gaur

‘अनाड़ी’ फ़िल्म का एक मशहूर गाना है, ‘किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का ग़म मिल सके तो ले उधार, किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार… जीना इसी का नाम है’. पिछले 10 सालों से दिव्यांग लोगों के लिए 657 एग्ज़ाम लिख चुकी बंगलुरु की रहने वाली एन एम पुष्पा प्रिया शायद इस गाने का असल मतलब समझ चुकी हैं.

बंगलुरु के BTM Layout की रहने वाली प्रिया एक MNC में काम करती हैं, पर उनकी पहचान शहर में एक ऐसी महिला के रूप में है, जो दृष्टिहीन और अपंग विद्यार्थियों के एग्ज़ाम लिखती हैं.

इसकी शुरुआत 2007 में उस समय हुई जब प्रिया ने पहली बार Down Syndrome से पीड़ित लड़के का पेपर लिखा. इस बारे में प्रिया का कहना है कि ‘मैं पेपर में क्या लिखती हूं इस पर बच्चों का रिज़ल्ट और उनका भविष्य निर्भर करता है. इसलिए किसी का पेपर देते समय मैं पूरे ध्यान से उसे सुनती हूं और एग्ज़ाम हॉल में उनके टेन्स होने के बावजूद ख़ुद को शांत रखती हूं.’

प्रिया आगे कहती हैं कि ‘मुझे बड़ा संयम और धैर्य रखना पड़ता है, क्योंकि कई बार एक ही प्रश्न को मुझे बच्चे को बार-बार समझाना पड़ता है. कई बार इसकी संख्या 25 से 30 बार भी पहुंच जाती है.’

कहां से मिलती है प्रेरणा?

इस बारे में पूछने पर प्रिया कहती हैं कि ‘मेरे परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो एग्ज़ाम फ़ीस भर सकें. इसकी वजह से मुझे एग्ज़ाम हॉल से बाहर निकाल दिया गया था, पर भले लोगों की मदद से मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर पाई. अब मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं, तो ये मेरी बारी है कि मैं दूसरों की मदद करूं.’

एक MNC में काम कर रहे गणपति आंशिक रूप से देख नहीं सकते. उनका कहना है कि ‘किसी ऐसे शख़्स की तलाश करना आसान नहीं है, जो अपना काम छोड़ कर आपका पेपर लिखे, पर प्रिया मेरे जैसे लोगों के लिए उम्मीद की एक किरण है. मेरे PG के एग्ज़ाम के दिनों में प्रिया ने ही मेरी मदद की थी.’

आज भी दूसरों के लिए जी रहे हैं कुछ लोग.

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