डेनमार्क में हर साल एक ख़ूनी खेल खेला जाता है. इसकी वजह से यहां के समुद्र का पानी नीला नहीं लाल हो जाता है. ये सब होता है परंपरा के नाम पर. हैरानी की बात तो ये है कि कोई इसका विरोध नहीं करता, यहां तक की वहां की सरकार भी इस संदर्भ में कुछ नहीं करती.
हम बात कर रहे हैं डेनमार्क के Faroe Islands पर होने वाले एक त्योहार की. इसका नाम है Grindadrap. इस त्योहार में परंपरा के नाम पर हर साल सैंकड़ों व्हेल और डॉल्फ़िन मछलियों को मौत के घाट उतार दिया जाता है.
हालांकि, डेनमार्क में व्हेल का शिकार ग़ैरक़ानूनी है, लेकिन फै़रो आइलैंड पर इसके लिए छूट है. व्हेल मीट फै़रो आइलैंड के लोगों के आहार का मुख्य हिस्सा है. शिकार की गई व्हेल का इस्तेमाल खाने में होता है.
यहां के निवासियों का कहना है कि ये परंपरा Vikings(1584) के ज़माने से ही चली आ रही है. इस त्योहार को मानने के लिए हर साल सैंकड़ों मछुआरे समुद्र में उतरते हैं. वो अपनी बोट्स से व्हेल का पीछा कर उसे घेर लेते हैं.
फिर लोग उन्हें किनारे लाकर पानी में ही या फिर रेत पर उन्हें धारदार हथियारों से काट देते हैं. घाव इतना गहरा होता है कि चंद सेकेंड में ही व्हेल की मौत हो जाती है.
जीव-जंतुओं के लिए काम करने वाली संस्थाएं हर साल मछलियों के इस नरसंहार का विरोध करती हैं. लेकिन डेनमार्क सरकार इस संदर्भ में कुछ नहीं करती. वहां के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता Páll Nolsøe ने इस बारे में बात करते हुए कहा- ‘Whaling इस आइलैंड के लोगों के जीवन का हिस्सा है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे मान्यता प्राप्त है.‘
वहीं सोशल मीडिया पर इस साल भी जब इस फ़ेस्टिवल की तस्वीरें सामने आईं, तो इंटरनेट यूज़र्स डेनमार्क सरकार की आलोचना करते दिखाई दिए:
परंपराएं हमेशा से ही मानव सभ्यता का हिस्सा रही हैं, लेकिन परंपरा के नाम पर जीवों का नरसंहार करना कहां तक उचित कहा जाता सकता है? हमें वक़्त के साथ अपनी परंपराओं को भी बदलना चाहिए. है के नहीं?