बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने बीते 19 जनवरी को यौन उत्पीड़न के केस की सुनवाई के दौरान यौन उत्पीड़न की परिभाषा दी. BBC की रिपोर्ट के अनुसार इस पीठ ने कहा कि अगर ‘स्किन टू स्किन’ टच नहीं हुआ है तो वो यौन उत्पीड़न नहीं होगा.
Live Law में छपे लेख के अनुसार जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला ने केस की सुनवाई करते हुए कहा कि आरोपी को प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन फ़्रॉम सेक्शुअल ऑफ़ेन्सेस (पोक्सो एक्ट) के तहत सज़ा नहीं होगी. कोर्ट ने आरोपी को आईपीसी की सेक्शन 354 के तहत सज़ा हुई.
’12 साल की बच्ची का ब्रेस्ट दबाना, इस बात के कोई सुबूत नहीं है कि आरोपी ने टॉप के अंदर हाथ डालकर ब्रेस्ट दबाए थे, ये सेक्शुअल असॉल्ट की परिभाषा में नहीं आएगा.’
— जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला
कोर्ट के इस फ़ैसले पर सोशल मीडिया से लेकर क़ानून विशेषज्ञों ने कड़ी आपत्ति जताई. डार्क मीम्स और गंभीर सवाल के ज़रिए लोग अपनी राय रखने लगे.
बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने बीते गुरुवार को यौन उत्पीड़न की एक और परिभाषा दी. Live Law के अनुसार, जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला ने कहा कि माइनर लड़की का हाथ पकड़ना और पैंट की ज़िप खोलना सेक्सुअल असॉल्ट नहीं है. ये पोक्सो एक्ट के तहत नहीं बल्कि आईपीसी सेक्शन 354ए के तहत अपराध है. 50 वर्षीय आदमी द्वारा 5 साल की बच्ची को मॉलेस्ट करने के केस पर सुनवाई के दौरान ये बयान दिया गया.
न्यायाधीश ने ये भी कहा कि केस में प्राइवेट पार्ट टच करने की कोई घटना नहीं हुई इसलिए ये सेक्शुअल असॉल्ट नहीं है.