वो भारतीय शहर जहां कौड़ियों के दाम बिकते हैं काजू, आलू-प्याज़ से भी सस्ता है इनका दाम

Abhay Sinha

काजू का ज़िक्र भी हो तो आदमी अपनी जेब टटोलने लगता है. क्या कीजिएगा भइया, बहुत महंगा है. एक किलो लेने जाओगे तो 800-1000 रुपये की चपत लगनी समझो. सेहत अच्छी हो न हो, मगर महीने भर का बजट ज़रूर खांसने लग जाएगा. लेकिन सोचिए अगर आपको यही काजू महज़ 30 से 40 रुपये किलो मिल जाए तो? (Cashews Sold Very Cheap In Jamtara Jharkhand)

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ना..ना.. बौरा नहीं रहे और न ही फ़ेक रहे. एकदम सच्ची-मुच्ची बता रहे. अगर आपको सस्ते में काजू खाने की बहुत चुल्ल है तो फिर झारखंड के जामताड़ा जिले में जाना होगा. फिर आप जेब खोल के उसमें ढेर सारे काजू भर सकते हैं. वो भी बेहद सस्ते दाम पर.

…इसलिए यहां कौड़ियों के दाम बिकता है काजू

झारखंड के जामताड़ा काजू पैदावार के लिए मशहूर है. यहां के नाला गांव में क़रीब 50 एकड़ ज़मीन पर काजू की खेती की जाती है. यहां इतना ज़्यादा काजू पैदा होता है कि इसे झारखंड की ‘काजू नगरी’ कहा जाता है.

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दिलचस्प बात ये है कि इस जगह को छोड़ कर पूरे झारखंड में कहीं भी ऐसे काजू के बागान नही हैं. बागान में काम करने वाले बच्चे और महिलाएं काजू को बेहद सस्ते दाम में बेच देते हैं. इन लोगों से बंगाल के व्यापारी आकर काजू ख़रीद जाते हैं, फिर महंगे दामों पर बेच देते हैं. भले ही यहां किसानों को कम मुनाफ़ा मिलता हो, फिर भी काजू की पैदावार से ख़ुश रहते हैं.

वहीं, जामताड़ा में काजू की इतनी बड़ी पैदावार चंद साल की मेहनत के बाद शुरू हुई है. इसकी कहानी भी बेहद रोचक है.

कैसे जामताड़ा बना काजू नगरी?

किसानों के मुताबिक, साल 1990 के पहले यहां काजू की खेती नहीं होती थी. उस दौरान जामताड़ा के डिप्टी कमिश्नर कृपानंद झा को काजू खाना बेहद पसंद था. वो चाहते थे कि जामताड़ा में काजू के बागान बन जाए तो वे ताजी और सस्ती काजू खा सकेंगे.

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ऐसे में वो ओडिशा में काजू की खेती करने वालों से मिले. उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों से जामताड़ा की भौगोलिक स्थिति का पता किया. मालूम पड़ा कि यहां की जलवायु और मिट्टी काजू की खेती के लिए अनुकूल है. इसके बाद यहां काजू की बागवानी शुरू कराई. देखते ही देखते चंद साल में यहां काजू की बड़े पैमाने पर खेती होने लगी.

एक अनुमान के मुताबिक, बागान में हर साल हज़ारों क्विंटल काजू फलते हैं. लेकिन देख-रेख के अभाव में स्थानीय लोग और यहां से गुज़रने वाले काजू तोड़कर ले जाते हैं. वहीं, किसान भी इन्हें आलू-प्याज़ के दामों पर बेच देते हैं.

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