महाराष्ट्र के कोंकण में ‘चकवा’ नाम लेते ही क्यूं कांप जाती है लोगों की रूह, जानिए क्या है ये

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Chakwa in Konkan Culture: भारत में आपको हर जगह अलग-अलग तरह के अनुभव मिलेंगे. स्पेशली जब बात भूतिया एक्सपीरियंसेज़ (Paranormal Activities) की आती है, तो सबकी दिलचस्पी थोड़ी और बढ़ जाती है. अब जब भूतिया एक्सपीरियंस की बात आ ही गई है, तो हम सभी ने भानगढ़ किले की रहस्यमयी और खौफ़नाक कहानियों के बारे में ज़रूर सुना होगा. हां, ये बात सच है कि इसको वास्तव में अनुभव करने का हमारा जिगरा नहीं है. इसके बारे में सुनकर ही पसीने छूटने लगते हैं. हालांकि, आज हम आपको भानगढ़ के बारे में नहीं बताएंगे. हमारे देश में इसके जैसी और कई खौफ़नाक जगहें हैं, जिनमें से ज़्यादातर गांव या जंगलों से जुड़ी हुई हैं. 

देश का एक ऐसा ही भूतिया हिस्सा है, जिसका नाम कोंकण है. यहां पर लोगों को रात में खौफ़नाक अनुभव होते हैं, जिसे यहां के लोग चकवा कहते हैं. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर ये चकवा (Chakwa in Konkan Culture) होता क्या है.  

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Chakwa in Konkan Culture 

राहगीरों ने एक्सपीरियंस की हैं अजीबो-ग़रीब चीज़ें

कोंकण एक ख़ूबसूरत जगह है, जो अरेबियन सी और हरे-भरे पश्चिमी घाट के बीच में स्थित है. यह भूमि महाराष्ट्र के उत्तर से गोवा तक फैली हुई है. जबकि मुंबई से गोवा की सड़क यात्रा आम बात है, लेकिन कोंकण के कुछ अधिक लोकप्रिय समुद्र तटों पर स्टॉपओवर के साथ, इन जंगली घाटों (विशेषकर यदि राजमार्ग पर नहीं) के माध्यम से एक रात की ड्राइव की सलाह हम आको कतई नहीं देंगे. यहां से रात में गुज़रने वाले कई ड्राइवर और यात्री रास्ते में हुए अजीबो-ग़रीब अनुभवों के बारे में बता चुके हैं. 

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कोंकण में आत्माओं को ख़ुश करने के लिए लोग चढ़ाते हैं बलि

पश्चिमी घाट (जैसे कोल्हापुर, सतारा आदि) के दूसरी तरफ अपने पड़ोसियों की तुलना में कोंकण कभी भी नकदी समृद्ध भूमि नहीं रही है. मुख्य रूप से मछली पकड़ने, खेती और वृक्षारोपण (आम, कटहल, बीटल नट्स आदि) में काम करने जैसी गतिविधियों में शामिल, क्षेत्र के लोग प्रकृति की अनियमितताओं पर बहुत अधिक निर्भर हैं. चाहे बारिश के दौरान अशांत समुद्र हो, जिस वजह से लोग मछली पकड़ना बंद कर देते हैं, या सूखा जिससे पानी की आपूर्ति ठप हो जाती है. शायद जीवन में इस अनिश्चितता ने लोगों को अलौकिक शक्ति की तलाश करने के लिए मजबूर कर दिया है, जो कि देवताओं से शुरू होती है, पर कुछ लोग ये शक्तियां आत्माओं या भूतों के ज़रिए भी अनुभव करते हैं. इस पूरे क्षेत्र में लोग आत्माओं को ख़ुश करने के लिए बलि (चिकन या बकरी का बलिदान), या देवता की मूर्ति से पूछने की क्रिया जैसी कई कॉमन प्रैक्टिस हैं, जो अपने पीछे काफ़ी रहस्यमयी सवाल छोड़ जाती हैं. 

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क्या होता है चकवा?

इन अजीबो-ग़रीब अनुभवों को लोकली ‘चकवा‘ कहते हैं. चकवा को कोंकण कल्चर में आत्मा कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि वो लोगों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाती हैं. हालांकि, उन्हें ख़ाली रास्तों पर अकेले राहगीरों को भटकाने में बहुत मज़ा आता है. लेकिन सुबह चकवा की शक्तियां ख़त्म हो जाती हैं और लोग अपनी मंज़िल पर बिना नुकसान के पहुंच जाते हैं. ऐसा भी हो सकता है कि, ये विश्वास सदियों पहले लोगों द्वारा यात्रियों को रात के अंधेरे में खुले में रहने के लिए मना करने के लिए बनाया गया था. लेकिन रियलिटी किसे पता है? (Chakwa in Konkan Culture)

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इसके बारे में तो सुनकर ही रोंगटे खड़े हो गए. 

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