कोविड-19 वैक्सीन पर कई सवाल उठ रहे हैं. बहुत से आम और ख़ास लोग ये सवाल कर रहे हैं कि फ़ेज़ ट्रायल से पहले ही वैक्सीन्स को मंज़ूरी कैसे दे दी गई. रिपोर्ट्स के अनुसार, 16 जनवरी से देशभर में टिकाकरण अभियान शुरू कर दिया जायेगा.
1984 में हुए त्रासदी के पीड़ितों के लिए काम करने वाली रचना ढिंगरा का आरोप है कि न ही अस्पताल वैक्सीनेशन के बाद होने वाले साइड-इफ़ेक्ट्स को भी नोट नहीं किया जा रहा है.
अभी मुफ़्त में मिल रहा है और बाद में पैसे भी लिए जा सकते हैं, कुछ लोगों ने ये सोचकर वैक्सीन लगाई. 750 रुपये इन लोगों के लिए काफ़ी बड़ी रक़म है.
-रचना ढिंगरा
ढिंगरा ने बताया कि यहां रहने वाले लोगों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और लगभग 600-700 लोगों को यहां वैक्सीन लगाई गई. किसी को भी कन्सेंट फ़ॉर्म नहीं दिया गया.
सभी लोगों को इन्फ़ॉर्मेशन शीट और 4 पेज दिए गए और कोई परेशानी होने पर रिपोर्ट करने को कहा गया. सारे फ़ॉर्म ख़ाली थे और वैक्सीन लगवाने वाले ज़्यादातर लोगों को पढ़ना-लिखना ही नहीं आता.
-रचना ढिंगरा
The Citizen से बात-चीत में ढिंगरा ने ये भी बताया कि वैक्सीन लगाने के बाद कुछ लोगों का स्वास्थ्य बिगड़ा, जब वे प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर को बताने के लिए अस्पताल गये तब उन्हें वापस भेज दिया गया और बाहर से दवाईयां ख़रीदने के लिए कहा गया.
People’s College of Medical Sciences And Research Centre में कोवैक्सीन का फ़ेज़-3 ट्रायल चल रहा है. अस्पताल ने तमाम आरोपं को ख़ारिज किया है.
बीते रविवार को 1984 भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के लिए काम करने वाली 4 एनजीओ(नॉन-गवर्मेंटल ऑर्गनाइज़ेशन) ने प्रधानमंत्री मोदी, स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन को ख़त लिखा और भोपाल में हो रही कोवैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल्स को रोकने की मांग की. इसके साथ ही कोवैक्सीन ट्रायल से हुई लोगों को क्षति के लिए आर्थिक कम्पेन्शेसन की भी मांग की गई.
New Indian Express की रिपोर्ट के अनुसार, 12 दिसंबर को एक 42 वर्षीय व्यक्ति की मौत हो गई, जिसे 9 दिन पहले वैक्सीन लगाई गई थी. डॉक्टर्स का कहना है कि मौत की वजह Poisoning हो सकती है. कौवैक्सीन के निर्माता, भारत बायोटेक ने एक स्टेटमेंट जारी करते हुए कहा कि ये मौत कोवैक्सीन की वजह से नहीं हुई.