2 बच्चों को श्रवण कुमार की तरह कंधे पर लादकर 160 किलोमीटर पैदल चल कर अपने गांव पहुंचा एक मज़दूर

J P Gupta

कोरोना वायरस के चलते जो देशव्यापी लॉकडाउन हुआ है उसकी सबसे अधिक मार प्रवासी मज़दूरों पर पड़ी है. ये मज़दूर सैंकड़ों किलोमीटर पैदल चल कर अपने घर जाने को मजबूर हैं. ओडिशा का एक मज़दूर भी अपने दो बच्चों को कंधे पर लादकर 160 किलोमीटर की यात्रा कर अपने गांव पहुंचा है. 

दिहाड़ी मज़दूर रुपया तुड़ू ओडिशा के मयूरभंज ज़िले के बलदिया गांव के रहने वाले हैं. वो लॉकडान होने से कुछ महीने पहले जयपुर पहुंचे थे. वो यहां पर एक ईंट के भट्टे में काम करते थे और उसके पास बनी झोपड़ियों में ही रहते थे. 

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फिर लॉकडाउन हुआ और उनका काम बंद हो गया. भट्टे के मालिक ने तुदु को उनकी मज़दूरी देने से भी इंकार कर दिए. उनके पास न तो खाने के लिए पैसे बचे थे और न ही कोई काम. ऐसे हालातों में उनके पास अपने घर वापस लौट जाने का ही विकल्प बचा. वो अपने तीन बच्चे और पत्नी के साथ पैदल ही अपने घर की ओर निकल पड़े.   

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उनकी 6 साल की बेटी तो उनके साथ पैदल चल सकती थी. मगर दो बच्चे जो 4 और 2.5 साल के थे उन्हें कैसे ले जाया जाए ये समस्या खड़ी हो गई. इसलिए उन्होंने बांस के एक डंडे पर दो बर्तनों को बांध कर उसमें एक तरफ सामान और दूसरी तरफ दोनों बच्चों को बैठा दिया. इस तरह उन्होंने जयपुर से अपने गांव तक का 160 किलोमीटर का सफ़र तय किया. 

वो बीते शनिवार को ही अपने घर पहुंचे हैं. यहां उन्हें नियमों के अनुसार 21 दिनों के लिए एक शेलटर होम में क्वारन्टीन किया गया है. तुड़ू कहते हैं- ‘चूंकि मेरे पास पर्याप्त पैसे नहीं थे इसलिए मैंने पैदल ही अपने गांव जाने का फ़ैसला किया. हमें गांव पहुंचने के लिए 7 दिनों तक पैदल चलना पड़ा. कई बार बच्चों को कंधे पर लटकाकर इस तरह यात्रा करना मुश्किल होता था. लेकिन मेरे पास कोई और चारा नहीं था.’

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इस क्वारन्टीन सेंटर में रह रहे तुड़ू के जैसे अन्य प्रवासी मज़दूरों की खाने-पीने की व्यवस्था नहीं थी. इसकी जानकारी मिलने के बाद BJD अध्यक्ष देबाशीष मोहंती ने तुड़ू और वहां रहने वाले अन्य श्रमिकों के लिए भोजन की व्यवस्था की. जब से लॉकडाउन शुरू हुआ तब से लेकर अब तक 1.15 लाख प्रवासी मज़दूर ओडिशा वापस लौट आए हैं.

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