एक समलैंगिक का बलात्कार हुआ है, पर वो शिकायत नहीं कर सकता, क्योंकि कानून की नज़र में वो भी दोषी है

Nagesh

हमारे देश में कई बातें ऐसी हैं, जो हमें विश्वगुरु साबित करती हैं. शर्म की बात तो ये है कि इस विश्वगुरु देश को संस्कारों ने कुछ इस तरह से जकड़ा हुआ है कि मानवता कहीं न कहीं रात-दिन घुटती रहती है. यहां बलात्कारी होने से भी बुरा माना जाता है समलैंगिक होना. आपको ये बात तो पता ही होगी कि यौन शोषण बस लड़कियों और महिलाओं का ही नहीं होता, पुरुषों का भी होता है. समलैंगिक भी इस सामाजिक कलंक से अछूते नहीं हैं. उनका शोषण और बलात्कार दोनों होता है, पर कानून की कुछ घटिया बंदिशों के कारण न ही वो कंप्लेन कर सकते हैं और न ही शर्म के कारण किसी और को बता सकते हैं. कई लोगों की सेक्सुअल ज़रूरतों का गला घोटकर बनाई गई कानून की धारा 377 वाकई बड़ी शर्मनाक है. भारत में समलैंगिकता को अप्राकृतिक माना जाता है.

Huffingtonpost

 

इससे जुड़ी कानूनी धारा का कहना है कि:

अप्राकृतिक अपराध: यदि कोई भी नागरिक प्राकृतिक तौर-तरीकों से अलग हट कर किसी आदमी, औरत या जानवर के साथ सेक्स करता है तो इसे कानून की नज़र में अपराध माना जायेगा और इस अप्राकृतिक क्रिया में संलग्न लोगों को या तो उम्रक़ैद या दस साल की जेल हो सकती है.

अब इसी बात के कारण एक आदमी ऐसा भी है, जो घर की चारदीवारी के बीच बैठा सिसक रहा है. अर्नव बर्बाद का एक दोस्त है, जो दिल्ली में रहता है. वो कुछ दिन पहले किसी आदमी के साथ डेट पर बाहर गया था, तभी उसे ड्रग्स दिया गया और उसका बलात्कार किया गया. वो इस दुर्घटना की शिकायत भी दर्ज नहीं करा सकता, क्योंकि वो एक गे है और उसके साथ दुष्कर्म करने वाले अपराधी भी पुरुष थे. कानून की नज़र में इस तरह से उन दोषियों के साथ ही साथ अर्नव का दोस्त भी गुनहगार होगा. अर्नव का दोस्त ये बात दिल में दबाये बैठा था, पर आख़िरकार उसके धैर्य ने दम तोड़ दिया और उसने सारी बातें अर्नव को बता दीं. देखिये अर्नव के स्क्रीनशॉट्स:

 

 

 

 

 

 

अर्नव के इस दोस्त की लाचारी न हम समझते हैं और न ही आप. किस स्थिति से वो गुज़र रहा है और क्या फ़ील कर रहा होगा, ये बताना ही नहीं बल्कि उसका अनुमान लगा पाना भी मुश्किल है. लेकिन ये बस एक घटना ही नहीं है. ऐसे कई अंजान लोग हैं, जो हर दिन किसी न किसी शहर में कहीं न कहीं किसी आदमी द्वारा शोषित किये जाते हैं, पर हमारे संस्कारी समाज के दिखावे के कारण उन्हें चुप रहना पड़ता है. कौन कहता है कि कानून सबके लिए समान है? अगर कानून हर इंसान के लिए समान हैं तो क्या समलैंगिक इन्सान नहीं होते?

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