प्रेरणा: ट्रक ड्राइवर की मौत के बाद उसके परिवार को हर महीने आधी सैलरी भेजती है ये IPS अफ़सर

J P Gupta

उस रात ट्रक ड्राइवर सरदार मान सिंह कई महीनों बाद अपने घर जा रहे थे. मान सिंह ने बहुत ही मेहनत कर करीब 80 हज़ार रुपए जोड़ लिए थे. वो अपने बीवी बच्चों से मिलने को लेकर इतना ख़ुश थे कि रात के अंधेरे में उन्होंने ग़लत मोड़ ले लिया. जब उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि वो रास्ता भटक गए हैं, तब उन्होंने किसी से रास्ता पूछने की सोची. लेकिन मान सिंह को क्या पता था कि उनका ये कदम उनके लिए आख़िरी रात साबित होगा.

भतीजी की शादी के लिए इकट्ठे किए थे पैसे

दरअसल, जिन लोगों से मान सिंह ने रास्ता पूछा था वो वास्तव में लुटेरे थे. उन्होंने भांप लिया कि मान सिंह यहां की गलियों से अंजान हैं और उनके पास पैसे तो होंगे ही. क्योंकि अमूमन ट्रक ड्राइवर्स लंबी-लंबी ट्रिप पर जाते हैं और उनके पास ख़र्च के लिए पैसे होते ही हैं. लुटेरों ने उनसे पैसे की डिमांड की, लेकिन मान सिंह ने ये पैसे अपनी भतीजी की शादी के लिए इकट्ठे किए थे, यही सोचकर उन्हें देने से इंकार कर दिया. नतीजा लुटेरों ने उनकी जाने ले ली और पैसे लेकर फ़रार हो गए.

परिवार पर टूट पड़ा मुसीबतों का पहाड़

इस बात से अंजान उनका परिवार चैन की नींद सो रहा था. मान सिंह के परिवार में तीन बच्चे (बलजीत कौर, जसमीत कौर और असमीत कौर) और एक बूढ़ी मां है. बेटे की मौत की ख़बर सुनने के बाद मां का भी देहांत हो गया. उनके परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ सा टूट पड़ा. इनका घर भारत-पाक बॉर्डर स्तिथ फ्लोरा गांव में है. दो बीघा ज़मीन है, जो अंतराष्ट्रीय सीमा के विवाद में फंसी है.

आईपीएस ऑफ़िसर ने मदद के लिए बढ़ाया हाथ

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उनकी बड़ी बेटी बलजीत कौर ने बताया कि- ‘हम इस बात को लेकर चिंतित थे, क्या हम अपनी पढ़ाई जारी रख सकेंगे? हमारे लिए दो वक़्त की रोटी का भी इंतजाम करना मुश्किल हो रहा था. तभी एक दिन उनके घर उनके पिता की मौत की जांच कर रही दिल्ली की आईपीएस ऑफ़िसर असलम खान का फ़ोन आया. डीसीपी मैम हमारी परिस्थितियों से भली-भांति परिचित थीं. उन्होंने हम सब से बात की और कहा कि हर महीने वो अपनी आधी सैलरी उन्हें भेजेंगी. तब से लेकर आज तक वो हर महीने हमें पैसे भेज रही हैं.’

बलजीत ने आगे कहा- वो हमारी फ़ैमिली से मिली भी नहीं हैं, वो हर दूसरे-तीसरे दिन हमारी ख़ैरियत जानने के लिए फ़ोन करती हैं. अधिकतर वो हमारी पढ़ाई के बारे में ही पूछती हैं. मैं भी उनकी तरह ही एक आईपीएस ऑफ़िसर बनना चाहती हूं.

हम जैसे बहुत से लोग काम का बहाना बनाकर अपने सामाजिक दायित्वों से भागते नज़र आते हैं. ऐसे लोगों के लिए असलम खान नज़ीर हैं. हमें इनसे प्रेरणा लेकर समाज के लिए भी कुछ करने की कोशिश करनी चाहिए. 

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