भारत में कोरोना वायरस से पीड़ित मरीज़ों की संख्या 10,363 तक पहुंच गई है. आज पीएम मोदी ने पूरे देश में जारी लॉकडाउन को 3 मई तक बढ़ाने की घोषणा की. उनसे पहले पंजाब, महाराष्ट्र, ओडिशा जैसे राज्य 30 अप्रैल तक अपने-अपने राज्य में लॉकडाउन को बढ़ाने की घोषणा कर चुके थे. अब ये सवाल उठता है कि आख़िर जब पूरे देश में लॉकडाउन है तो राज्यों में अलग से इसे लागू करने की क्या ज़रूरत? राज्य द्वारा घोषित लॉकडाउन और केंद्र सरकार द्वारा घोषित तालाबंदी में क्या फ़र्क है?
इसे समझने के लिए एक स्कूल का उदाहरण सही होगा. एक स्कूल के प्रिंसिपल पर पूरे स्कूल की ज़िम्मेदारी होती है. साथ ही स्कूल में क्लास टीचर्स होते हैं जो जिन पर अपनी-अपनी कक्षा की ज़िम्मेदारी होती है. जब एक क्लास टीचर कोई रूल बनाता है तो वो केवल उस कक्षा पर ही लागू होता है. मगर जब एक प्रिंसिपल कोई नया नियम बनाता है तो वो पूरे स्कूल पर लागू होता है.
इसी तरह राज्य भी व्यक्तिगत रूप से संचालित होते हैं. संविधान के अनुसार, राज्यों के पास क़ानून और व्यवस्था के साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे विषय से संबंधित कदम उठाने के अधिकार होते हैं. महामारी रोग अधिनियम 1897(Epidemic Diseases Act) राज्यों को बीमारी के प्रकोप और प्रसार को रोकने के लिए अस्थाई नियम बनाने का अधिकार देता है. इसी के तहत उन्होंने अपने राज्य में लॉकडाउन का आदेश दिया है.
दूसरी तरफ केंद्र सरकार प्रिंसिपल की भूमिका निभाती है. जब सारे राज्य एक पृष्ठभूमि पर नहीं आते हैं तो उसे एकरूपता बनाए रखने और स्थिति को संभालने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ता है. अगर राज्य सरकार केंद्र सरकार के फ़ैसले से असहमत भी है तब भी उसे नियमानुसार केंद्र का आदेश मानना ही होता है.
इसलिए राज्य सरकार अपने राज्य में लॉकडाउन का आदेश दे सकती है पर केंद्रीय स्तर पर लगाए गए लॉकडाउन को अपने यहां लागू करने से मना नहीं कर सकती.