पल्स पोलियो प्रोग्राम के अंतर्गत एक डॉक्टर, राधेश्याम जेना ओडिाशा के माओवादी प्रभावित ज़िले मलकनगिरी के एक दूर-दराज़ के गांव में गये थे. राधेश्याम सिर्फ़ वहां के बच्चों के लिए ही नहीं एक गर्भवती महिला के लिए भी फ़रिश्ता साबित हुए.
Hindustan Times की रिपोर्ट के मुताबिक़, राधेश्याम और उनकी टीम ने गर्भवती महिला को 30 किलोमीटर चलकर सरकारी अस्पताल तक पहुंचाया.
बीते रविवार को मलकानगिरी के कालीमेला कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में काम कर रहे राधेश्याम, पल्स पोलियो प्रोग्राम के अंतर्गत Kodidulagundi गांव गये थे जहां उन्हें एक लेबर पेन से तड़प रही एक गर्भवती महिला के बारे में पता चला.
Rinama Bare अपने घर पर थीं लेकिन गांव में पक्की सड़क न होने की वह से उसे पास के हेल्थ सेंटर न ले जाया जा सका.
जब मैं रीनामा के घर पहुंचा तो देखा कि उसे ब्लीडिंग हो रही थी और वो गंदगी से घिरी हुई थी. मैंने उसकी सुरक्षित डिलीवरी तो करवा दी, पर उसकी ब्लिडिंग नहीं रुक रही थी. उसके गर्भाशय में एक और संतान भी थी. वहां मोबाईल सिग्नल भी नहीं आ रहा था, अपने सुपीरियर्स से बात करने के लिए मुझे पहाड़ की चोटी पर जाना पड़ा. सीडीएमओ ने मुझ से कहा कि हमें किसी भी हाल में महिला को अस्पताल में एडमिट करवाना है और उसकी ज़िन्दगी बचानी है. इसलिये रीनामा के परिवार से 2 महिलाएं और हमारी टीम से 6 लोगों ने महिला को स्ट्रेचर पर लेटाया और कालीमेला के कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में एडमिट करवाया.
-डॉ. जेना
ये टीम कालीमेला कम्युनिटी हेल्थ सेंटर के लिए दोपहर 12 बजे निकली लेकिन पथरीले और पहाड़ी रास्तों से होते हुए रात के 8 बजे पहुंची. हेल्थ सेंटर में महिला ने एक मृत बच्चे को जन्म दिया.
ये पहली बार नहीं है जब किसी गर्भवती महिला या किसी बीमार व्यक्ति को कई किलोमीटर चलकर हेल्थ सेंटर या अस्पताल तक पहुंचाया गया हो.
Hindustan Times की रिपोर्ट के अनुसार, बीते रविवार को को ही मलकानगिरी के ही एक गांव, Gopapuda की काशमी गोलारी ने को अस्पताल ले जाया जा रहा था और रास्ते में ही उसने खुले में बच्चे को जन्म दिया. काशमी के परिवार ने ऐंबुलेंस को फ़ोन किया था पर ख़राब सड़कों की वजह से वो नहीं पहुंचा.