अमेरिकी डॉक्टर का दावा, गांजे का अगर भरपूर मेडिकल फ़ायदा लेना चाहते हो, तो इसे अपने Butt में डाल लो

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दुनिया के कई हिस्सों में मैरुआना आज लोगों की ज़रूरत बन गया है. मेडिकल मैरुआना यानि ऐसा गांजा, जिसे दवा के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है. 1996 में कैलिफॉर्निया, अमेरिका का पहला ऐसा राज्य था, जहां मेडिकल मैरुआना को वैध किया गया था. इसके बाद से अमेरिका ने 25 से ज़्यादा राज्यों में इसके इस्तेमाल को कानूनी कर दिया है.

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कई रिसर्च में ये साबित हो चुका है कि मेडिकल मैरुआना के इस्तेमाल से पार्किंसन, अर्थराइटिस, अल्ज़ाइमर और ऐसी ही कई गंभीर बीमारियों में राहत मिलती है. गांजे का समर्थन करने वाले लोगों का ये भी कहना है कि अगर गांजे को कानूनी कर दिया जाएगा, तो सरकार को शराब कंपनियों से मिलने वाले ज़बरदस्त रेवेन्यू को भी झटका लगेगा. यहीं वजह है कि सरकार इन पर प्रतिबंध को बरकरार रखना चाहती है. रास्ता सफ़ारी जैसे कई अंडरग्राउंड कल्चर भी समय-समय पर इसे लीगल करने की मांग करते रहे हैं.

लेकिन कनाडा में मेडिकल मैरुआना को लेकर एकदम अलग राय है. हेल्थ कनाडा और कनाडा का मेडिकल एसोसिएशन किसी भी तरह के धूम्रपान को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक समझता है, फिर चाहे आप मेडिकल मैरुआना का ही प्रयोग क्यों न कर रहे हों.

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इस मामले में अमेरिका के एक डॉक्टर ने एक कदम आगे बढ़ते हुए बेहद अजीबोगरीब समाधान दिया है. जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में मेडिकल डायरेक्टर मिखाइल कोगन का मानना है कि फेफड़ों की वजह से मेडिकल मैरुआना ठीक से शरीर में घुल नहीं पाता है. जहां स्मोक करने से स्वास्थ्य पर असर पड़ता है वहीं अगर आप इसे खाते हैं, तो भी Gastric जूस की वजह से आप इसका पूरा लाभ नहीं ले पाएंगे.

ऐसे में अगर आप मेडिकल मैरुआना का इस्तेमाल अपनी बीमारी के लिए करना चाहते हैं, तो इसका सबसे प्रभावी तरीका होगा कि इसे अपने Butt में डाल लिया जाए.

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सुनने में भले ही ये अजीब लगे, लेकिन मिखाइल का कहना है कि मेडिकल मैरुआना इस्तेमाल कर रहे किसी भी पेशेंट के लिए ये तरीका बेहद लाभदायक साबित हो सकता है. ये अनोखा ट्रीटमेंट, कैंसर और ऐसी ही कई गंभीर बीमारियों से निपटने के लिए कारगर है, क्योंकि इससे 70 प्रतिशत मैरुआना शरीर में Absorb हो सकता है. इसका असर महज 10-15 मिनटों में सामने आ जाता है और कई बार ये आठ घंटों तक अपने असर को कायम रख सकता है.

हालांकि इस तरीके को डॉक्टर से सलाह लेने के बाद ही अपनाने की कोशिश की जाए, क्योंकि प्रक्रिया के संवेदनशील होने के चलते यह ट्रीटमेंट हर व्यक्ति के लिए सही नहीं कहा जा सकता.

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