डॉ. सुबोध कुमार: वो इंसान जिसने फ़्री में की 37,000 सर्जरी, बिखेरी मासूम चेहरों पर मुस्कान

Abhay Sinha

सच में डॉक्टर भगवान का ही रूप होता है. इस बात की जीती-जागती मिसाल हैं डॉ. सुबोध कुमार सिंह (Dr. Subodh Kumar). वाराणसी के ये डॉक्टर बच्चों को चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए अब तक 37,000 सर्जरी मुफ़्त कर चुके हैं.

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दरअसल, कुछ बच्चों के होठों और मुंह के अंदर कुछ विकृति हो जाती है. इसे क्लेफ्ट लिप्स (cleft lips) कहते हैं. इस मेडिकल कंडीशन से पीड़ित बच्चों को बचपन में दूध तक पीने में दिक़्कत आती है. वहीं, बड़े होने पर वो दिखने में भी अजीब लगते हैं. इसके चलते लोग उनका मज़ाक तक उड़ाते हैं. 

अगर कोई इसकी सर्जरी कराना चाहे, तो ये बड़ा महंगा होता है. ग़रीब लोग इसका खर्च नहीं उठा पाते. ऐसे में डॉ. सुबोध ऐसे बच्चों की मदद करते हैं. उन्होंने जनरल सर्जरी में स्पेशलाइजेशन हासिल किया हुआ है और वे खास तौर पर कैंप लगाकर कटे-फटे होठों की सर्जरी करते हैं.

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ये विकृति बच्चों की मौत का कारण भी बन जाती है

डॉ. सुबोध ने बताया कि ‘इस तरह के बच्चों की कुपोषण के कारण मौत भी हो जाती है, क्योंकि वो सही से दूध भी नहीं पी सकते हैं. बच्चों को बोलने के लिए जीभ का उपयोग करने में कठिनाई होती है. इस विकृति के कारण उनके कान में भी इन्फ़ेक्शन हो जाता है.’

ऐसे बच्चे स्कूल भी नहीं पूरा कर पाते. नौकरियां मिलने में मुश्किल आती है. पेरेंट्स को भी काफ़ी सहन करना पड़ता है. ख़ास तौर से मां को. क्योंकि लोग इस बीमारी के लिए उन्हें ज़िम्मेदार ठहराते हैं. मगर एक सर्जरी के ज़रिए इन सब चीज़ों से निजात पाई जा सकती है. 

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यही वजह है कि 2004 से ही उन्होंने अपना मेडिकल करियर ऐसे बच्चों को डेडिकेट कर दिया. वो तबसे 37,000 से ज़्यादा सर्जरी कर चुके हैं. क़रीब 25,000 परिवारों के चेहरे पर मुस्कान लौटा पाए हैं. 

कभी सड़कोंं पर बेचते थे मोमबत्तियां और साबुन

डॉ. सुबोध और उनके परिवार का जीवन संघर्षों से भरा रहा है. जब वो 13 साल के थे, तब उनके पिता का हार्ट अटैक से निधन हो गया था. डॉ. सुबोध चार भाइयों में सबसे छोटे थे. उनके भाइयों को परिवार चलाने के लिए पढ़ाई छोड़नी पड़ी. उन्होंने अपने भाइयों के साथ पैसे कमाने के सड़कों पर मोमबत्तियां, साबुन और चश्मे बेचे.

हालांकि, उनके पिता सरकारी क्लर्क थे. ऐसे में बड़े भाई को मृतक आश्रित में नौकरी मिल गई. उनके भाई ने ही उन्हें पढ़ाया. परिवार की मदद और उनकी लगन से डॉक्टर बनने का उनका सपना साकार हुआ और उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ से अपनी पढ़ाई पूरी की. बहुत मेहनत और संघर्ष से आज वो इस मुकाम पर पहुंचे हैं. मगर वो इसका इस्तेमाल पैसा कमाने के बजाय, समाज और बच्चों की भलाई में कर रहे हैं. 

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