इको-फ्रेंडली टॉयलेट्स बना कर गोवा के इस गांव ने दोबारा जिंदा कर दी मर चुकी एक झील

Sumit Gaur

अख़बारों और न्यूज़ चैनलों में आपने वैज्ञानिकों और इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स के ऐसे कई प्रयोगों के बारे में पढ़ा और देखा होगा, जिसमें उन्होंने बेकार पड़े पदार्थों को खाद में बदल कर न सिर्फ़ प्रकृति को नुकसान से बचाया, बल्कि हरियाली फैलाने में भी अपनी अहम भूमिका अदा की.

ऐसा ही एक कारनामा गोवा के एक गांव ने कर दिखाया है, जिसकी एक कोशिश ने खुले में शौच की समस्या को हारने के साथ ही मल के निपटारे का भी समाधान निकाल लिया है. इस कोशिश को पूरा करने का श्रेय आर्किटेक्ट Tallulah D’Silva और एक स्थानीय NGO को जाता है, जिन्होंने बच्चों और ग्रामीणों को अपने घरों में EcoLoos बनाने के लिए प्रेरित किया.

ऑनलाइन पोर्टल The Better India की रिपोर्ट के मुताबिक, ओल्ड गोवा के 5 किलोमीटर के दायरे में फैले Carambolim गांव को वर्ल्ड हेरिटेज साईट का दर्ज़ा हासिल है. ये गांव यहां मौजूद Karmali Lake की पहचान भी है, जो प्रवासी पक्षियों के साथ ही कई जन-जीवों का आशियाना भी है.

पर कुछ साल पहले तक ऐसा नहीं था, सीवेज और पाइपलाइन की कोई व्यवस्था नहीं होने की वजह से शौचालय से निकला मल सीधा इस झील में छोड़ा जाता था, जिसकी वजह से ये झील लगभग एक नाले में तब्दील होने की कगार पर पहुंच चुकी थी.

2 साल पहले गांव में रहने वाले कुछ बच्चों ने इस ओर सोचा और इस झील को बचाने के लिए आगे आये. इन बच्चों के प्रयास से ही आज गांव में 7 सूखे टॉयलेट बन पाए हैं, जो सुरक्षित होने के साथ-साथ इको-फ्रेंडली भी है.

ये विचार उस समय आया जब पणजी के एक NGO ने बच्चों की बाल ग्राम सभा बना कर अपने विचार रखने के लिए कहा. इसके बाद ये बात सामने आई कि टॉयलेट न होने की वजह से उनके गांव की झील किस तरह प्रदूषित हो रही है. फंड जुटाने के लिए NGO ने लोगों को जोड़ स्पोंसर्स को जुटाना शुरू किया.

EcoLoos की अहमियत को बताने के लिए आर्किटेक्ट Tallulah D’Silva ने कई बार इस गांव का दौरा किया. धीरे-धीरे इसके प्रति लोगों में जागरूकता फैलने लगी. EcoLoos के बारे में Tallulah D’Silva का कहना है कि ‘इसके अंतर्गत दो चैम्बर बनाये जाते हैं. एक का इस्तेमाल टॉयलेट के रूप में होता है, जबकि दूसरे में मल एकत्रित होता है. इस चैम्बर में मिट्टी और राख मिलाई जाती है, जो गांव में बड़े आराम से मिल जाती है.’

इन चैम्बर को भरने में 6 महीने का वक़्त लगता है, जिसके बाद इन्हें खाली कर दिया जाता है, तब तक ये वेस्ट एक खाद में बदल जाता है. ये खाद मिट्टी में जान फूंकने का काम करती है और हरियाली को बरक़रार रखती है. प्रभाकर नाइक इस गांव के पहले वो शख़्स थे, जिन्होंने अपने घर में EcoLoos बनावाया था.

EcoLoos को बनवाने में करीब 20 हज़ार से 50 हज़ार का खर्च आता है, पर Carambolim में इसकी कामयाबी को देखने के बाद कई कंपनियां CRS इनिशिएटिव के तहत गोवा के Kakra में ऐसे ही टॉयलेट बनवाने के लिए आगे आई हैं. 

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