70 हज़ार करोड़ ख़र्च करने के बावजूद भी भारत की शिक्षा में स्थिति इतनी बदतर क्यों है?

Bikram Singh

शिक्षा के बारे में महान दार्शनिक अरस्तू ने लिखा है कि ‘शिक्षा की जड़ें बहुत कड़वी हैं, लेकिन फल बहुत मीठा है.’ शिक्षा के विषय पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का भी यही विचार है. वे कहते हैं कि शिक्षा से समाज और देश को निखारा जा सकता है. कुल मिलाकर बात ये है कि शिक्षा ही वह कुंजी है, जिसकी मदद से आप किसी राष्ट्र का चरित्र निर्माण कर सकते हैं. शिक्षा क्यों ज़रुरी है? और इससे राष्ट्र का निर्माण कैसे हो सकता है?

ये चंद ऐसे सवाल हैं, जिनका एक ही उतर ‘शिक्षा’ है

शिक्षा से समाज की दिशा तय होती है. वर्तमान में भारत की साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत है. आज़ादी के समय में यही दर 16 प्रतिशत के करीब थी. उस समय देश की जनसंख्या भी बहुत कम थी. World Bank की एक रिपोर्ट के अनुसार, हिन्दुस्तान में जीडीपी का कुल 4.3 प्रतिशत शिक्षा के ऊपर ख़र्च किया जाता है. कई देशों के मुकाबले में यह राशि बहुत ही ज़्यादा है.

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भारत में शिक्षा को लेकर कई कानून बने हुए हैं. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 45 के अनुसार, 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को सरकार नि:शुल्क व अनिवार्य रूप से प्राथमिक शिक्षा प्रदान करेगी. इसके अलावा सरकारी संस्थानों में बहुत कम फीस की व्यवस्था की गई है. देश में कई ऐसे संस्थान हैं, जहां छात्र आसानी से पढ़ सकते हैं. इतना ही नहीं सरकार ने Right to Education का कानून बना कर शिक्षा को पूरी तरह से वैध और अनिवार्य कर दिया है.

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आज़ादी के 60 साल बाद बना यह कानून 1 अप्रैल, 2010 से लागू हो चुका है. इसे बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 नाम दिया गया है.

ये ऐसी बातें हैं, जो आप गूगल की मदद से कहीं भी और कभी पढ़ सकते हैं. इसके लिए आपको ज़्यादा मेहनत करने की ज़रुरत नहीं है. 100 बात की एक बात ये है कि शिक्षा से बेरोजगारी और अपराध जैसी समस्याओं को क्यों नहीं दूर किया जा रहा है. एक कदम तो हमने मंगल पर बढ़ा दिया, मगर दूसरा कदम अभी भी नाले में है.

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देश में बेरोजगारी और अपराधिक मामलों का बढ़ना, ये दर्शाता है कि शिक्षा के मामले में हम अभी भी बहुत पीछे हैं. सरकार मिड-डे मिल और आंगनबाड़ी जैसे कार्यक्रमों की मदद से एक कोशिश ज़रुर कर रही है. लेकिन दुख की बात ये है कि ये अधिकारियों के निवाले हैं.

वैश्विक स्तर पर हम अपनी काबिलियत के कारण मौजूद हैं. इंजीनयर्स, डॉक्टर्स, नर्सेस और कुशल कारीगरों ने विदेशों में सफ़लता के झंडे गाड़ दिए. मगर हमारी नींव अभी भी कमज़ोर है. वक़्त की नजाक़त को भांपते हुए, हमें इस पर ग़ौर करने की ज़रुरत है. 

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