आख़िर कितनी होती है एक EVM की क़ीमत और ये कैसे काम करती है?

Abhay Sinha

चुनाव जब भी आते हैं, नेता EVM यानि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (Electronic Voting Machine) को लेकर उधम काटना शुरू कर देते हैं. पिछले कुछ सालों से तो कुछ ज़्यादा EVM हैक होने के आरोप लगने लगे हैं. आज हम आपको इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन सी जुड़ी कुछ बेहद रोचक जानकारियां देने जा रहे हैं.

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EVM क्या है और ये कैसे काम करती है?

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन वोटों को रिकॉर्ड करने वाली एक इलेक्ट्रानिक डिवाइस है. इसमें दो यूनिट होती हैं. पहली कंट्रोल और दूसरी बैलेटिंग यूनिट. ये पांच मीटर लंबी केबल से जुड़ी होती है. जब आप वोट डालने जाते हैं,तो चुनाव अधिकारी बैलेट मशीन के ज़रिए वोटिंग मशीन को ऑन करता है. फिर आप अपनी पसंद के प्रत्याशी और उसके निशान के आगे बने बटन को दबाकर वोट दे सकते हैं.

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अगर कभी हमला हो जाए, तो मतदान अधिकार बस एक बटन दबाकर मशीन बंद भी कर सकता है, ताकि फ़र्जी वोट न पड़ सकें. साथ ही, भारत में बनीं ये मशीनें बैटरी से चलती हैं. ऐसे में लाइट जाने पर वोटिंग प्रभावित नहीं होती और वोटर्स को कंरट लगने का भी ख़तरा नहीं होता.

एक मशीन पर कितने उम्मीदवार होते हैं?

दो तरह की मशीन होती हैं.  M2 EVM और M3 EVM. पहली में नोटा समेत 64 उम्मीदवारों के निर्वाचन कराए जा सकते हैं. इसके लिए 4 बैलेटिंग यूनिटों को जोड़ना पड़ता है. यानि एक मशीन पर 16 उम्मीदवार ही होते हैं. वहीं, M3 मशीन का इस्तेमाल साल 2013 के बाद से होने लगा है, जिसमें नोटा समेत 384 उम्मीदवार हो सकते हैं. यानि 24 बैलटिंग यूनिटों को जोड़ा जा सकता है. बता दें, इस मशीन की कंट्रोल यूनिट में डाटा तब तक सुरक्षित रहता है, जब तक उसे जानबूझकर हटाया न जाए.

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आख़िर कितनी होती है एक EVM की क़ीमत?

अब सवाल ये है कि एक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की क़ीमत कितनी होती है. बता दें, M2 ईवीएम की लागत क़रीब 8670 रुपये थी. वहीं, M3 की क़रीब 17,000 प्रति यूनिट लागत आती है. एक मशीन के लिए ये लागत देखने में भले ही ज़्यादा लगे, मगर वास्तव में ये बैलट पेपर की तुलना में कम ही है और सुविधाजनक भी.

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चुनाव आयोग के अनुसार, हर निर्वाचन के लिए लाखों की संख्या में बैलट पेपर छपवाने, उनके ट्रांसपोर्ट, स्टोरेज वगैरह पर जो ख़र्च होता था, वो इस मशीन के चलते अब नहीं होता. वहीं, वोटों की गिनती में भी बहुत कम समय लगता है. पहले वोटों की गिनती में 30 से 40 घंटे का समय लगता है. अब ये काम महज़ 3 से 5 घंटे के अंदर हो जाता है. इसके साथ ही मशीन फर्ज़ी मतों को अलग कर देती है, जिससे ऐसे वोटों को गिनने में लगने वाले समय और ख़र्च में ख़ासी कमी आई है.

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