जो पूर्वसैनिक एक साल पहले बना था नोटबंदी से हुई तकलीफ़ों का चेहरा, आज कह रहा है ये

Komal

हिंदुस्तान टाइम्स की एक फ़ोटो नोटबंदी के बाद लोगों को हुई तकलीफ़ों का चेहरा बन गयी थी. इस तस्वीर में था लाइन में लगा एक बुज़ुर्ग पूर्वसैनिक, जो बेबसी से बिलख रहा था. एक साल पहले ये तस्वीर खूब वायरल हुई थी.

ये तस्वीर गुड़गांव की एक बैंक के बाहर ली गयी थी. इस पूर्व सैनिक का नाम नन्द लाल है. आज नोटबंदी को एक साल हो गया है. इस बारे में नन्द लाल से बात करने पर पता चला कि 79 वर्षीय पूर्वसैनिक अब पहले से ज़्यादा खुश है.

उन्होंने कहा, “नोटबंदी से किसे फ़ायदा हुआ, मुझे नहीं पता पर पहले मुझे कोई पूछता नहीं था, अब सब पूछते हैं, बैंक वाले भी.”

अब उनके लिए बैंक से पेंशन निकालना आसान हो गया है. बैंक वाले अब उनका ज़्यादा ख्याल रखते हैं. वो हर महीने की 5 या 6 तारीख़ को भारतीय स्टेट बैंक की न्यू कॉलोनी ब्रांच में अपनी पेंशन निकालने जाते हैं.

वो गुड़गांव के भीम नगर में किराये के एक छोटे कमरे में अकेले रहते हैं. कुछ दूर पर ही यहां उनका अपना घर हुआ करता था. उन्हें 19,700 रुपये पेंशन के रूप में मिलते हैं और फ़रीदाबाद में रहने वाली उनकी बेटी, मंजू उन्हें हर महीने 8,000 रुपये भेजती है. उनके कमरे का किराया चार हज़ार है और घर में काम करने वाली महिला को उन्हें 15,000 रुपये देने होते हैं.

उन्होंने बताया कि पहले उन्हें 2,000 के नोट दिए जाते थे, पर अब उन्हें छोटे नोट भी दिए जाने लगे हैं.

इस सोमवार वो अपनी नौकरानी कलावती के साथ बैंक आये थे. उसने उनकी पासबुक अपडेट करायी और गार्ड ने उन्हें बैठने के लिए बेंच दी. दस मिनट के अंदर उनका सारा काम कर दिया गया.

बैंक के गार्ड राम यादव ने बताया कि अब नन्द लाल को यहां सब जानते हैं. सब कोशिश करते हैं कि उन्हें कोई तकलीफ़ न हो.

नन्द लाल बंटवारे के बाद पाकिस्तान से गुड़गांव आकर बस गए थे. करीब तीन दशक पहले उनकी बीवी की मृत्यु हो चुकी है. उन्होंने आर्मी में नौकरी के दौरान पाकिस्तान से हुआ 1971 का युद्ध भी लड़ा है.

उनका अपना घर था, जिसे अपनी बेटी की शादी कराने के लिए उन्होंने 15 साल पहले बेच दिया था. उनकी बेटी चाहती है कि वो उसके साथ आकर रहें, ताकि वो उनकी सेवा कर सके, लेकिन नन्द लाल ये जगह छोड़ कर नहीं जाना चाहते. 

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