सर्दी से कांपते, किसी का बदन पूरा ढका है किसी का नहीं ढका है, किसी के पास चप्पल हैं तो कोई नंगे पैर ही. आंखों में फ़रियाद लिए हज़ारों किसान दिल्ली आ पहुंचे हैं.
देश के अलग-अलग हिस्सों (गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश) से लाखों किसान दिल्ली आ चुके हैं. 29 नवंबर को रामलीला मैदान में इकट्ठे हुए किसानों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन किया, जिसमें नुक्कड़ नाटक भी किए गए.
इस बार मार्च में किसानों के पोस्टर्स काफ़ी कुछ कह रहे हैं:
किसान मार्च #FarmersMarch pic.twitter.com/hhu4DouNWO
— The Lallantop (@TheLallantop) November 30, 2018
NDTV के अनुसार, गुरुवार को तमिलनाडु से लगभग 1200 किसान अपने दो साथियों के मुंड लेकर आए. उनका दावा है कि उनके 2 साथियों ने आत्महत्या कर ली थी. संसद तक मार्च में रास्ता रोके जाने पर इस समूह ने नग्न मार्च करने की धमकी दी.
30 नवंबर को किसान, संसद की ओर बढेंगे. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) के ध्वज तले किसान विरोध कर रहे हैं. AIKSCC 200 से ज़्यादा किसान संगठनों का समन्वय है.
किसानों की मांगे:
फ़ेसबुक पर कई लोग ये पीत पत्र शेयर कर रहे हैं. ये किस संगठन द्वारा जारी किया गया है इस विषय में जानकारी नहीं है. पर ये Pamphlet किसानों की मांगों को सरलता से समझा रहा है.
The Wire के अनुसार, किसानों की मुख्यत: तीन मांगे हैं:
1. MSP (Minimum Support Price) या न्यूनतम समर्थन मूल्य भारत सरकार द्वारा कृषि उत्पादकों को कृषि उत्पादों के लिए दिया जाने वाला मूल्य है. किसान इसे बढ़ाने की मांग कर रहे हैं.
2. कर्ज़ माफ़ किए जाने की मांग कर रहे हैं किसान.
3. संसद में किसानों के मुद्दों पर चर्चा का एक स्पेशल सेशन रखा जाए, जिसमें किसानों की समस्याओं और उनके हितों पर चर्चा हो.
इसके अलावा AIKCC द्वारा तैयार किए गए दो बिल, कर्ज़ माफ़ी बिल (The Freedom From Indebtedness Bill) और कृषि उपज लाभकारी मूल्य गारंटी बिल (Bill To Guarantee Remunerative MSP) पारित करने की भी मांग की जा रही है.
पिछले कुछ महीनों में भारत ने कई किसान आंदोलन देखे हैं. नासिक से मुंबई तक किसानों का पैदल मार्च देखा.
दिल्ली में अक्टूबर में भी किसान मार्च का आयोजन किया गया था, जिसने बाद में हिंसक रूप ले लिया था.
मध्य प्रदेश के मंदसौर में जून 2017 में पुलिस ने विरोध कर रहे किसानों पर गोलियां चला दी और इस घटना में 6 किसानों की जान भी चली गई.
इस घटना के बाद AIKCC की स्थापना की गई.
The Wire के मुताबिक, 1995 से 2016 के बीच 3,33,398 किसानों ने आत्महत्या कर ली. यानी 42 किसान हर रोज़ अपनी ज़िन्दगी ख़त्म कर रहे हैं. इतनी मौतों के बावजूद सत्तापक्ष में रहने वाली अलग-अलग पार्टियां इसे रोकने में असफ़ल रही है.
जिनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं हो, उन्हें कुछ खोने का डर नहीं सताता, चाहे वो अपनी जान ही क्यों न हो. अपने हक़ के लिए सरकार से भिड़ जाने का जुनून लेकर दिल्ली आने वाले किसानों को हम सलाम करते हैं.