पहलवानी में ‘गामा’ का कोई सानी नहीं था. ब्रूस ली भी इन्हें मानते थे अपना गुरु

Bikram Singh

हो सकता है कि ‘अपराजय ‘ शब्द गामा पहलवान के लिए ही बना हो. इसका अर्थ होता है कभी नहीं हारने वाला. गामा पहलवान दुनिया के ऐसे पहलवान थे, जिन्होंने अपनी ज़िंदगी में कभी कोई कुश्ती नहीं हारी. जहां भी गए विजेता बने, उनकी इसी बात से ब्रुस ली भी काफ़ी प्रभावित हुए थे और इम्प्रेस होकर बॉडी बनाना सीखा. गामा पहलवान विश्व विजेता थे, जहां जाते अपनी कुश्ती की छाप ज़रूर छोड़ कर आ जाते. आइए आज गामा पहलवान के बारे में आपको बताते हैं.

कौन हैं गामा पहलवान?

पंजाब के अमृतसर शहर में मशहूर पहलवान मोहम्मद अजीज के घर 1878 में गुलाम मोहम्मद का जन्म हुआ था. प्यार से लोग उन्हें ‘गामा’ कह कर बुलाते थे. पिता की देख-रेख में गामा पहलवानी करने लगे.

10 साल की उम्र में की पहलवानी

जोधपुर में पहलवानी की प्रतियोगिता हुई जिसमें देश भर से हज़ारों पहलवान भाग लेने पहुंचे थे. इस प्रतियोगिता में गामा पहलवान ने भी भाग लिया. 10 साल की उम्र में उन्होंने अपनी कुश्ती से लोगों के दिलों में जगह बना ली.

ख़ूब खाते थे और कसरत करते थे

गामा पहलवान की ख़ासियत थी कि वे प्रतिदिन व्यायाम करते थे, जिनमें 5000 बैठकें और 1000 से ज़्यादा दंड शामिल थे. इसके अलावा गामा रोज़ करीब 10 लीटर दूध, आधा किलो घी और 6 देसी मुर्गी खाते थे.

कैसे बने वर्ल्ड चैंपियन?

वैसे तो गामा पहलवान कई देशों में अपनी कुश्ती का झंडा गाड़ चुके हैं. लेकिन लंदन में उन्हें उनकी पहचान मिली. लंदन पहुंचते ही उन्होंने वहां के दिग्गजों के सामने चौंकाने वाली चुनौती पेश कर दी. गामा ने उस समय के दिग्गज स्टेनिस्लास जबिस्को और फ्रेंक गॉच को ललकारा और उन्हें 9 मिनट 30 सेकंड के अंदर ही चित्त कर दिया.

बाद में पाकिस्तान के हो गए

हिन्दुस्तान-पाकिस्तान बंटवारे के समय में वे अपने परिवार संग अमृतसर से लाहौर चले आए. मई 1960 को लाहौर में ही उनका निधन हुआ.

देश रत्न थे

अविभाजित भारत के वे एकमात्र ऐसे पहलवान थे, जिन्हें दोनों देशों की जनता प्यार करती थी. आज भले वे हमारे बीच ना हो लेकिन उनके कारनामें हमारी यादों में हमेशा रहेंगे.

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