गणेश उत्सव के सातवें दिन जुहू और दादर बीच पर बह आयीं हज़ारों मरी हुईं मछलियां, कछुए और सांप

Rashi Sharma

मुंबई शहर में गणेश उत्सव के दौरान मुम्बइकर्स में एक अलग ही उत्साह और हर्षोल्लास देखने को मिलता है. हमेशा गणेश चतुर्थी के उत्सवों से गुज़र रहा है. मुंबई में इन दिनों गणेश उत्सव चल रहा है. यहां पर हर गली-नुक्कड़ में पंडाल लगाए जाते हैं, जिनमें बड़ी-बड़ी सुन्दर और विशाल भगवान गणेश जी की मूर्तियों को 10 दिनों के लिए स्थापित किया जाता है. मुंबई के आम निवासियों से लेकर बड़ी-बड़ी हस्तियां इस उत्सव में हिस्सा लेती हैं.

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मुंबई के लिए कहा जाता है कि इस शहर की रफ्तार कभी नहीं रुकती है और शायद इसी तरह गणेश उत्सव अपने पीछे जो कूड़ा-कचरा छोड़कर जाता है, वो भी कभी नहीं रुक सकता है. हर साल गणपति विसर्जन के दौरान मुंबई निवासी लाखों दूध और डेयरी प्रोडक्ट्स के पैकेट, नारियल के खोल के अलावा पूजा में इस्तेमाल होनी वाली कई तरह की सामग्री समुद्र तटों पर ही छोड़ जाते हैं.

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वहीं हर साल भगवान गणेश की मूर्तियों का विसर्जन न केवल समुद्र को प्रदूषित करता है, बल्कि जलीय जीवन को भी भारी नुकसान पहुंचाता है. बृहन्‍मुंबई नगर निगम (BMC) और ग़ैर-सरकारी संस्थायें वर्षों से इस ख़तरे से निपटने के लिए संघर्ष कर रही हैं.

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Mumbai Mirror के अनुसार, और ये साल भी हर साल की तरह ही रहा गणपति विसर्जन के सातवें दिन. इस साल गणेशोत्सव के सातवें दिन जुहू और दादर बीच पर जलीय जीवों की ज़िन्दगी में आये भूचाल का मंज़र बेहद ही भयानक और तबाही वाला था. बीते गुरुवार को जुहू और दादर बीच पर हज़ारों की संख्या में मरी हुई मछलियां और कछुए बहकर आ गए. जलीय जीवों की इतनी संख्या में मौत का कारण पर विशेषज्ञों का कहना है कि प्लास्टर ऑफ़ पेरिस से बनी मूर्तियों, उन पर लगे कैमिकल युक्त पेंट और फूलों से पानी में रहने वाले जीवों को बहुत नुकसान होता है.

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बीते गुरुवार, बीच वॉरिअर्स नाम के NGO के वॉलंटिअर्स जब दादर बीच पर पहुंचे, तो कछुओं, मछलियों, पानी के सांपों के मृत शरीर को देखकर हैरान रह गए. इन मरे हुए जीवों के साथ वहां प्लास्टर ऑफ़ पेरिस पाया गया. बीच वॉरिअर्स के टीम लीडर चीनू क्वात्रा ने बताया कि मूर्तियों में इस्तेमाल POP, फूलों, प्रसाद और दूसरे चढ़ावे के सड़ने से जो बैक्टीरिया पैदा होते हैं वही मछलियों की मौत का कारण हैं.

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आपकी जानकारी के लिए बता दें कि चीनू क्वात्रा इसी साल दादर बीच की सफ़ाई के लिए सुर्ख़ियों में आये थे. चीनू ने बताया, ‘मूर्तियों को बनाने में यूज़ होने वाले पेंट में क्रोमियम, लेड, ऐल्युमिनियम और कॉपर होता है, जो पानी में मिलकर जहर बन जाता है. इनसे मछलियों के गिल्स को नुकसान हो जाता है. वहीं POP से पानी में ऑक्सिजन की मात्रा भी कम हो जाती है. चढ़ावे के सड़ने के साथ ही बैक्टीरिया पानी से ऑक्सिजन ले लेते हैं और मछलियां पानी की कमी से मरने लगती हैं.’

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The Logical Indian के अनुसार, इसी 14 सितम्बर को चीनू क्वात्रा की युवा सेना ने बीच का बारीकी से निरिक्षण किया था, और टूटी हुई 95 मूर्तियों और बाकी पूजा की सामग्री को इकठ्ठा करके बीएमसी को सौंपा था.

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क्वात्रा की सेना के सभी वॉलंटिअर्स और दूसरे कार्यकर्ता, जिन्होंने अपने मिशन में कई टन प्लास्टिक और कांच का कचरा साफ़ किया था, गुरुवार को इस बीच की ये हालत देख कर बहुत दुखी हो गए थे क्योंकि ये बीच पहले जैसा ही गंदा हो चुका था.

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इसके साथ ही क्वात्रा ने बताया कि गणपति विसर्जन के साथ-साथ सारा प्लास्टिक भी वापस आ गया है. उन्होंने लोगों से अपील भी की है कि त्योहार मनाने के साथ ही अगर वो ईको-फ्रेंडली मूर्तियों का इस्तेमाल करते हुए पर्यावरण के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभाएंगे तो हम जलीय जीवन को बचा पाएंगे.

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उन्होंने कहा कि ग्लोबल वॉर्मिंग से पर्यावरण असुंतलन को जानने के बाद भी लोगों की सोच आज भी नहीं बदली है और लोगों को आज भी यही लगता है कि अगर वो समुद्र की जगह आर्टिफिशल तालाबों में विसर्जन करेंगे, तो उन्हें उनकी पूजा का फल और पुण्य नहीं मिलेगा.

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