कहने को तो भारत विश्व गुरु है मगर जब बात महिलाओं के अधिकारों और उनके उत्थान की आती है तो ज़मीनी हक़ीक़त कुछ और ही कहानी बयां करती है. शहरों से दूर देश के गांव-कस्बों में लड़कियों के लिए इतनी बंदिशें मौजूद हैं कि गिनते-गिनते उंगलियां कम पड़ जाए.
राजस्थान के बाड़मेर जिले के बायतू तहसील में एक गांव है लापला तला (कोसरिया ग्राम पंचायत) जहां लड़कियों को घर से बाहर निकलने की मनाही है. ज़ाहिर है कि यहां का समाज अभी भी बहुत रूढ़िवादी है. मगर आपने वो कहावत तो सुनी ही होगा कि कीचड़ में भी कमल खिलते हैं.
इसी गांव से आने वाली चतरू एक एथलीट है जो राष्ट्रीय स्तर पर कई मेडल जीत चुकी हैं. पिछले दिनों उन्होंने भोपाल में आयोजित फ़ेडरेशन कप में अंडर-20 की 3000 मीटर रेस में 9:45.57 मिनट के मीट रिकॉर्ड के साथ गोल्ड मेडल जीता है.
वो पिछले कई सालों से जयपुर में रह रही है और एसएस जैन सुबोध कॉलेज में पढ़ती हैं. वो बताती हैं कि उनके माता-पिता उनकी हर तरह से मदद करते हैं. उनके पिता गांव में बारिश के मौसम में खेती-बारी करते हैं और बाकी समय में मज़दूरी करके परिवार चलाते हैं.
खेलों में आने के लिए उन्हें कॉमनवेल्थ गेम्स गोल्ड मेडलिस्ट, कृष्णा पूनिया ने प्रेरित किया था. ग़ौरतलब है कि कृष्णा पूनिया ने 2012 में लापला तला गांव का दौरा किया था और तभी चतरू की उनसे मुलाक़ात हुई थी. इस गांव में महिलाओं की साक्षरता दर 30 प्रतिशत कम है.
चतरू ने 2013 में पहली बार जिला स्तर पर खेला. फिर 2015 में जयपुर आ गई. वो रोजाना सुबह 3 घंटे और शाम को 3 घंटे ट्रेनिंग करती है. चतरू ने और भी कई मेडल अपने नाम किये हैं:
चतरू गांव-क़स्बों में ऊंचे सपने देखने वाली लड़कियों के लिए एक मिसाल है.